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Mahakumbh Stampede : पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा न देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई फटकार

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की अवकाश पीठ ने कहा कि, "यदि सरकार एक बार मुआवजा घोषित करती है तो उसका समय पर और सम्मानजनक तरीके से भुगतान किया जाना अनिवार्य है।"

by Anurag Ranjan
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प्रयागराज : प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले के दौरान मौनी अमावस्या (29 जनवरी) की रात हुई भीषण भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा न दिए जाने को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।

कोर्ट ने कहा— मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की अवकाश पीठ ने कहा कि, “यदि सरकार एक बार मुआवजा घोषित करती है तो उसका समय पर और सम्मानजनक तरीके से भुगतान किया जाना अनिवार्य है।” न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मृतक के परिजनों को मुआवजा मांगने के लिए मजबूर करना राज्य सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है।

बिना पोस्टमार्टम शव दिए जाने पर भी जताई चिंता

कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई कि मेला क्षेत्र में मृतकों के शव बिना पोस्टमार्टम के उनके परिजनों को सौंप दिए गए। याचिकाकर्ता उदय प्रताप सिंह ने अपनी पत्नी के साथ हुई घटना को लेकर रिट दाखिल की थी। उनकी पत्नी 29 जनवरी को भगदड़ में लापता हो गई थीं और पांच फरवरी को मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से बिना पोस्टमार्टम के शव सौंपा गया था।

राज्य सरकार की दलील पर सख्त टिप्पणी

राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने अदालत में दलील दी कि चूंकि याचिकाकर्ता ने मुआवजे के लिए औपचारिक दावा नहीं किया है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पर अदालत ने कहा, “यह रवैया सरकार की पीड़ितों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। एक बार जब सरकार को मृतक और उनके परिजनों की जानकारी मिल जाती है, तो मुआवजा देना उसका कर्तव्य है।”

सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश

अदालत ने राज्य सरकार से हलफनामे के माध्यम से यह जानकारी देने को कहा है कि कितने मुआवजा दावे प्राप्त हुए, कितनों पर निर्णय लिया गया और कितने दावे लंबित हैं।

इसके साथ ही अदालत ने मेला क्षेत्र के विभिन्न मेडिकल संस्थानों को भी पक्षकार बनाते हुए उनसे 28 जनवरी से मेला समाप्ति तक सभी मौतों, पोस्टमार्टम और इलाज की जानकारी मांगी है। अगली सुनवाई की तारीख 18 जुलाई 2025 तय की गई है।

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