प्रयागराज: कुंभ मेला दुनिया भर में अपनी आध्यात्मिकता और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस बार यहां पहुंचे एक संत ने सबका ध्यान आकर्षित किया। यह संत आवाहन अखाड़े के महंत इंद्र गिरी महाराज है, जो अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद कुंभ में पहुंचे। उनके इस साहसिक निर्णय ने हर किसी को हैरान कर दिया। महंत इंद्र गिरी, जिनके दोनों फेफड़े 97 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त हैं, ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं और इसके बावजूद उन्होंने कुंभ मेले में भाग लेने का निर्णय लिया।
महंत इंद्र गिरी ने बताया कि “यह कुंभ मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चाहे कुछ भी हो जाए, तीनों शाही स्नान के बिना वापस नहीं जाऊंगा।” यह शब्द उनके अपार साहस और आस्था को दर्शाते हैं। महंत इंद्र गिरी के स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टरों ने उन्हें चार साल पहले ही चेतावनी दी थी कि उनका बाहर जाना खतरनाक हो सकता है। बावजूद इसके, महंत ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आस्था के बल पर इस कठिन यात्रा को चुना। वे हरियाणा के हिसार से ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ कुंभ मेले में पहुंचे, जहां उनकी स्थिति को देखकर लोग उनके समर्पण और श्रद्धा को देखकर नतमस्तक हो गए।
सहनशीलता और तपस्या का अद्वितीय उदाहरण
महंत इंद्र गिरी की जीवन यात्रा एक प्रेरणा है। वे पिछले चार दशकों से आवाहन अखाड़े से जुड़े हुए हैं और उनके जीवन का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक उन्नति और सेवा करना है। वे 2020 से पंच अग्नि धुनि तपस्या कर रहे हैं। यह तपस्या बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण है, जिसमें पांच अग्नि कुंडों के बीच बैठकर तप किया जाता है।
महंत की तपस्या की एक अजीब घटना भी घटी थी। साल 2000 में जब वे पांच अग्नि कुंडों के बीच तप कर रहे थे, तो एक शिष्य ने अनजाने में उन पर पानी डाल दिया, जिससे बुखार आ गया और तबियत बिगड़ गई। डॉक्टरों ने बताया कि इस तपस्या के कारण उनके दोनों फेफड़े खराब हो गए हैं, और तब से वे ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं।
कुंभ मेले में महंत का अनूठा योगदान
महंत इंद्र गिरी का स्वास्थ्य बेहद नाजुक होने के बावजूद उन्होंने अपने धार्मिक कर्तव्यों को कभी नहीं छोड़ा। वे कुंभ मेले के दौरान अपने शिविर में प्रत्येक श्रद्धालु की देखरेख करते हैं। पंगत में बैठाने से लेकर भोग प्रसाद देने और दक्षिणा देने तक, वे हर कार्य को अपने हाथों से करते हैं। उनका यह समर्पण उनके अद्वितीय धार्मिक विश्वास और मानवता की मिसाल है।
महंत ने कहा कि प्रयागराज के संगम तट पर कुंभ मेले में यदि मेरी जान भी चली जाए, तो मुझे कोई पछतावा नहीं होगा। मेरे लिए यह मोक्ष के द्वार को खोलने जैसा होगा।
संघर्ष और आस्था की कहानी
महंत इंद्र गिरी की यह यात्रा न केवल उनकी आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा है, बल्कि यह संघर्ष और आस्था का एक जीवित उदाहरण है। उनके जीवन में आई कठिनाइयों और शारीरिक बाधाओं के बावजूद उनका आस्था और संकल्प कभी डिगा नहीं। वे खुद को भगवान के कार्यों में समर्पित मानते हैं और कुंभ के आयोजन में अपनी भूमिका निभाना उनके लिए एक अद्भुत अवसर है। महंत इंद्र गिरी की इस यात्रा से हमें यह सिखने को मिलता है कि जब किसी के भीतर सच्ची आस्था और इच्छाशक्ति होती है, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि विश्वास, समर्पण और कठिन परिश्रम से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
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