पटना : हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य गणित के महत्व और उसके योगदान को समाज में बढ़ावा देना है। इस दिन, हम महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के प्रति सम्मान का भाव प्रकट करते हैं, जिनकी गणितीय प्रतिभा ने दुनिया को चकित कर दिया। इस अवसर पर, हम बिहार के एक और महान गणितज्ञ, डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को भी याद करते हैं, जिनकी गणित में अनगिनत उपलब्धियां और योगदान दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह: एक विलक्षण प्रतिभा
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म 1942 में बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में हुआ। बचपन से ही उनकी मेधा की चर्चा विद्यालयों में होने लगी थी। अपनी असाधारण गणितीय क्षमता के कारण, उन्होंने नेतरहाट विद्यालय में दाखिला लिया, जो उस समय का सबसे प्रतिष्ठित आवासीय विद्यालय था। 1958 में उन्होंने नेतरहाट स्कूल की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और 1963 में उच्च विद्यालय की परीक्षा में भी उच्चतम अंक हासिल किए।

शिक्षा में असाधारण सफलता
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की गणित में गहरी रुचि को देखते हुए पटना विश्वविद्यालय ने उनके लिए विशेष नियमों में बदलाव किया। 1963 में, जब उनके सहपाठी पहले वर्ष की कक्षा में थे, डॉ. वशिष्ठ ने फाइनल वर्ष की परीक्षा दी और उसी वर्ष उन्होंने बीएससी और एमएसी की डिग्री प्राप्त की। इस असाधारण उपलब्धि के साथ, उन्होंने बिहार टॉप किया और गणित के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई।
आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने 1969 में “द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी” के माध्यम से दुनिया भर के गणितज्ञों को हैरान कर दिया। अपनी अद्वितीय गणना क्षमता के कारण, उन्हें बर्कले विश्वविद्यालय द्वारा “जीनियस ऑफ जीनियस” का दर्जा दिया गया। उन्होंने आइंस्टीन के प्रसिद्ध सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी, और उनकी इस थ्योरी पर काम शुरू होने लगा। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने उनकी थ्योरी को गहनता से अध्ययन करना शुरू किया, और इसके परिणामस्वरूप उनकी गणितीय दृष्टि को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली।
अपोलो मिशन में योगदान
अपोलो मिशन के दौरान, जब तकनीकी समस्या उत्पन्न हुई और 31 कंप्यूटर बंद हो गए, तो डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपनी गणना से मिशन को सफल बनाने में मदद की। जब कंप्यूटर ठीक हुए, तो उनकी गणना और कंप्यूटर द्वारा दी गई रिपोर्ट में कोई अंतर नहीं था। इस अद्वितीय उपलब्धि के कारण, बर्कले विश्वविद्यालय ने उन्हें “जीनियस ऑफ जीनियस” के रूप में सम्मानित किया।
मानसिक बीमारी और गुमनामी
1971 में भारत लौटने के बाद, डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी के शिकार हो गए। 1989 में, वह अचानक गुम हो गए और 1993 में रांची के पास एक होटल के बाहर मिले, जहाँ वे कूड़े से खाना खा रहे थे। उनके जीवन का यह अध्याय बेहद दुखद था, और उनकी स्थिति ने समाज और प्रशासन की उपेक्षा को उजागर किया। पवन टून, एक प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट, ने डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह के गुमनाम दिनों के बारे में लिखा और बताया कि उनकी मानसिक बीमारी का कारण उनके शोधों के प्रति जुनून और पत्नी द्वारा उनका शोध नष्ट कर दिया जाना था।