दिग्गज अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को 8 अक्टूबर 2024 को दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें प्रदान किया। पुरस्कार ग्रहण करने के बाद अपने भाषण में मिथुन चक्रवर्ती ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत और संघर्षों पर बात की। उन्होंने बताया कि जब वे फिल्म इंडस्ट्री में आये थे तब कई लोगों ने उन्हें, उनके सांवले रंग की वजह से वापस जाने को कहा था।
काले रंग के कारण फिल्म इंडस्ट्री में अपमानित
भारत सरकार द्वारा तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित मिथुन चक्रवर्ती ने बताया कि फिल्म इंडस्ट्री में शुरुआती दिनों में उनका किस तरह से अपमान किया गया था। उन्होंने बताया कि कैसे लोगों ने उनसे कहा, “फिल्म इंडस्ट्री में काला रंग नहीं चलेगा। जितना अपमान हो सकता था, उतना अपमान हुआ।”
डांस को बनाया अपना हथियार
हालांकि, बाद में अभिनेता ने अपने कम्प्लेक्सन से परे अपने डांस स्किल्स को निखारने पर ध्यान देने का फैसला किया। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपने हुनर को साबित करने के लिए अपने स्ट्रांग पॉइंट ‘डांस’ को अपना हथियार बनाया। और आज यही वजह है कि लोग मिथुन दा के डांस से प्रभावित उन्हें ‘डिस्को डांसर’ के नाम से भी जानते हैं। एक्टर कहते हैं, “मैंने तब डांस करने का फैसला किया। मैं चाहता था कि लोग मेरे पैरों को देखें, मेरे चेहरे या मेरी त्वचा के रंग को नहीं। सभी फिल्मों में मैंने पैरों से डांस किया, और लोग मेरे रंग को भूल गए।” मिथुन ने अपनी इस सफलता की जर्नी का जिक्र किया। “अगर मैं यह कर सकता हूं, तो कोई भी कर सकता है।” यह कहते हुए मिथुन चक्रवर्ती ने आज की पीढ़ी को कभी हार नहीं मानने की सलाह दी। उन्होंने अपने भाषण का समापन सभी को यह बताकर किया जो वे अक्सर कहते हैं: “खुद सो जाना लेकिन अपने सपनों को मत सोने देना”।
FTII से की है पढ़ाई
मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जून, 1950 को कोलकाता, भारत में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता बसंत कुमार और शांति रानी चक्रवर्ती थे। उन्होंने ओरिएंटल सेमिनरी में पढ़ाई की और कोलकाता में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से केमिस्ट्री में बीएससी की डिग्री हासिल की। बाद में, उन्होंने पुणे में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान से ग्रेजुएशन किया।
ये थी मिथुन चक्रवर्ती की पहली फिल्म
मिथुन चक्रवर्ती को अक्सर उनके प्रशंसक प्यार से मिथुन दा कहते हैं। उन्होंने 1976 में ‘मृगया’ से अपनी फ़िल्मी शुरुआत की, संथाल विद्रोही ‘आदिवासी’ बनकर उनके किरदार ने मिथुन को उनकी पहली फ़िल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार दिलाया। इसके बाद उन्हें तहदर कथा (1992) और स्वामी विवेकानंद (1998) में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए दो और राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाजा गया था।बॉलीवुड में, वह आखिरी बार 2022 में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में दिखाई दिए थे।