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National Human Rights Commission : शेल्टर होम में बच्चियों की मौत के मामले में NHRC ने नीतीश सरकार को जारी किया नोटिस

तीन बच्चियों की मौत का मामला केवल पटना के आसरा केंद्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे राज्य के शेल्टर होम्स और आसरा केंद्रों में देखरेख और सुरक्षा के स्तर की गंभीरता को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

by Rakesh Pandey
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पटना: पटना के पटेल नगर स्थित आसरा केंद्र में तीन बच्चियों की मौत का मामला अब गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है। आयोग ने बिहार सरकार से इस घटना की विस्तृत रिपोर्ट दो सप्ताह के भीतर पेश करने को कहा है। यह रिपोर्ट न केवल मृतक बच्चियों की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी देने को कहती है, बल्कि मुआवजा वितरण और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए किए गए उपायों के बारे में भी पूछताछ करती है।

घटना का संक्षिप्त विवरण

7 नवंबर को पटना के पटेल नगर स्थित आसरा केंद्र में भोजन खाने के बाद तीन बच्चियों की मौत हो गई थी। बताया गया है कि इन बच्चियों की मौत फूड प्वाइजनिंग से हुई थी। हालांकि, मृतक बच्चियों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आया है। घटना के बाद शुरूआत में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए थे, लेकिन तीन दिन बाद समाज कल्याण विभाग की टीम इस मामले की जांच करने के लिए पहुंची थी।

जांच में लापरवाही के संकेत

बिहार बाल संरक्षण आयोग के सदस्य राकेश कुमार सिंह ने इस घटना की जांच के दौरान वहां की लापरवाही की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से मानसिक रूप से बीमार बच्चियों के लिए बेहतर देखभाल की योजना है, लेकिन आसरा केंद्र में जिस तरह की लापरवाही दिखाई दी, उससे यह स्पष्ट है कि केंद्र में कड़ी निगरानी की आवश्यकता है। राकेश कुमार सिंह ने यह भी बताया कि उन्होंने केंद्र पर मौजूद सीसीटीवी फुटेज की मांग की है ताकि यह पता चल सके कि घटनास्थल पर क्या हुआ था और क्यों प्रशासन ने इतनी देर से कार्रवाई की।

आसरा केंद्र का संचालन और सरकार की जिम्मेदारी

पटना के आसरा केंद्र सहित बिहार के सभी शेल्टर होम और आसरा केंद्र समाज कल्याण विभाग के अधीन आते हैं। इन केंद्रों में अनाथ बच्चों और कम उम्र के सजायाफ्ता बच्चों को रखा जाता है। इन शेल्टर होम में बच्चों की देखभाल के लिए सरकार द्वारा तय मानकों के अनुसार व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन इस घटना से स्पष्ट होता है कि कई जगहों पर इन मानकों का पालन नहीं हो रहा है।

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड और सरकारी प्रयास

यह घटना एक बार फिर से 2018 में हुए मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की याद दिलाती है, जब शेल्टर होम में बालिकाओं के साथ यौन शोषण जैसे घिनौने अपराध हुए थे। उस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था और बिहार सरकार के समाज कल्याण मंत्री तक आरोपों के घेरे में आ गए थे। मुजफ्फरपुर कांड के बाद बिहार सरकार ने यह फैसला लिया था कि वह खुद शेल्टर होम चलाएगी। इसके तहत, 2020 में बिहार सरकार ने 12 जिलों में शेल्टर होम बनाने का प्रस्ताव रखा था। इन शेल्टर होम के निर्माण के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट भी निर्धारित किया गया था। हालांकि, यह योजना अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है।

बिहार सरकार से रिपोर्ट की मांग

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार से इस घटना पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है। आयोग ने पूछा है कि इस घटना के बाद प्रभावित बच्चों या उनके परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं। यह मामला केवल पटना के आसरा केंद्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे राज्य के शेल्टर होम्स और आसरा केंद्रों में देखरेख और सुरक्षा के स्तर की गंभीरता को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अगर बिहार सरकार इस मामले में सख्त कदम नहीं उठाती, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है, जो बच्चों की सुरक्षा को खतरे में डालेंगी।

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