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NISSAR मार्च में होगा लांच, कैसे नासा-इसरो का ज्वाइंट मिशन बदल देगा अर्थ ऑब्जर्वेशन

नासा के जेपीएल में निसार के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट ने कहा कि निसार हर हफ्ते पृथ्वी की सतह में होने वाले बदलावों को मापेगा और प्रत्येक पिक्सल एक टेनिस कोर्ट के आधे आकार के क्षेत्र को कैप्चर करेगा।

by Reeta Rai Sagar
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सेंट्रल डेस्क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जल्द ही नासा के साथ मिलकर एक ज्वाइंट मिशन की शुरूआत करने वाला है, जिसका नाम- इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISSAR) है। खबर है कि यह अंतरिक्ष यान मार्च में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा।

मिशन ग्राउंडब्रेकिंग डुअल-बैंड रडार तकनीक के साथ अर्थ ऑब्जर्वेशन को फिर से परिभाषित करने के लिए तैयार है। यह अपनी तरह का पहला उपग्रह होगा, जो ग्रह की डायनेमिक सरफेस की अभूतपूर्व सूक्ष्म दृष्टि को उजागर करेगा।

निसार क्या करेगा?
नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से डिजाइन किया गया निसार भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी के कारण होने वाली लैंड डिफॉर्मेशन को ट्रैक करेगा। वैज्ञानिक अनुसंधान और आपदा प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, यह ग्लेशियर और बर्फीली चादर के डायनेमिक के साथ-साथ जंगलों औऱ वेटलैंड में हुए चेंजेज की भी निगरानी करेगा। साथ ही वैश्विक कार्बन चक्र और जलवायु परिवर्तन पर भी नजर डालेगा।

नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) में निसार के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट पॉल रोसेन ने मिशन की अद्वितीय संभावनाओं पर बात करते हुए कहा कि निसार हर हफ्ते पृथ्वी की सतह में होने वाले बदलावों को मापेगा, जिसमें प्रत्येक पिक्सल एक टेनिस कोर्ट के आधे आकार के क्षेत्र को कैप्चर करेगा। इस फ्रीक्वेंसी और रिजॉल्यूशन से हमें एक जीवित प्रणाली के रूप में ग्रह के बारे में जानने में मदद मिलेगी।

सैटेलाइट की डुअल-बैंड रडार सिस्टम, जिसमें एल-बैंड और एस-बैंड दोनों ही तरह के वेबलेंथ शामिल हैं, को अलग करता है। एल-बैंड, एक लंबी वेबलेंथ के साथ, बोल्डर और ट्री ट्रंक्स जैसी बड़ी संरचनाओं के साथ बातचीत करता है, जबकि एस-बैंड, एक छोटी वेबलेंथ के साथ, पत्तियों और खुरदरी सतहों जैसी छोटी वस्तुओं का पता लगाता है।

लंबे समय से चल रहा था इस मिशन पर काम
नासा के प्रस्तावित DESDynI उपग्रह और इसरो के S-बैंड टेकनोलॉजी की खोज से पैदा हुए मिशन को बनाने में सालों की मेहनत लगी हैं। इस पाटर्नरशिप को 2014 में औपचारिक रूप दिया गया था। यह महाद्वीपों, समय, क्षेत्रों और 9,000 मील से अधिक तक फैला हुआ था। इस सैटेलाइट को भारत में असेंबल किया गया और जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ताकत को दर्शाता है।

निसार से उपलब्ध डेटा को फ्री एक्सेस के लिए क्लाउड में स्टोर किया गया है। इकोसिस्टम मैनेजमेंट से लेकर जल संसाधन प्रबंधन तक की विविधता को पूरा करेगा।

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