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अब आंगनबाड़ी केंद्रों में बजेगी स्वदेशी धुन: वीरों की होगी वंदना

by Rakesh Pandey
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दुमका : एक से 28 सितंबर तक मनाए जा रहे राष्ट्रीय पोषण माह में अबकी बार आंगनबाड़ी केंद्रों में स्वदेशी धुन सुनाई देगी। दरअसल सरकार के स्तर से तय गतिविधियों में कुपोषण से जंग और स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वदेशी को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया है। खास बात यह कि गांव-गांव को मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाने के उद्देश्य से आंगनबाड़ी केंद्रों में एक माह तक योग, पंच प्राण, वसुधा वंदन एवं वीरों के वंदन के स्वर गूंजेंगे।

इसके साथ-साथ स्वदेशी से जुड़ाव के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में स्वदेशी खिलौना बनाने को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। मोटा अनाज व इसकी रेसिपी से अवगत कराया जाएगा। आदिवासी भोजन व खाद्यान्नों की उपयोगिता को लेकर भी अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए पोषण वाटिका का निर्माण, समेत कई ऐसे कार्यक्रमों को इस अभियान का हिस्सा बनाया गया है जिससे स्वदेशी को बढ़ाव मिलेगा।

साग की कई किस्में आदिवासियों के पसंद में शामिल

कुपोषण से जंग में महिलाओं के लिए सबसे अधिक सहायक हरी-सब्जियां और साग को माना गया है। चिकित्सक डा.अंकिता सिंह कहती हैं कि हरी साग सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पोषण तत्व पाए जाते हैं। महिलाओं को इसका सर्वाधिक इस्तेमाल करना चाहिए। आदिवासी महिलाओं व बच्चों के बीच काम करने वाली अनुरीता हेंब्रम कहती हैं कि आदिवासी समुदाय के लोग जंगल, खेत व नदियों में उगने वाले साग का प्रयोग खाद्य के तौर पर करते हैं।

इनमें से कुछ साग दवा का भी काम करती है। उरांव आदिवासियों में बड़े.बूढ़े बच्चा पैदा होने पर यह नहीं पूछतेकृ लड़का हुआ या लड़की। कहती हैं कि आदिवासी जंगल व जमीन से जुड़े हैं । इसी कारण बच्चा पैदा होने पर पूछते जाता है हल जोतवा हुआ या साग तोड़वा। मतलब लड़का हुआ तो हल जोतने वाला और लड़की हुई तो वह साग तोड़ने वाली होगी। लेकिन इस कहावत का यह मतलब नहीं है कि लड़का हल ही चलाएगा और लड़की साग ही तोड़ेगी।

यह महज इनकी जमीनी जुड़ाव का दर्शाता है। अब तो लड़कियों, स्त्रियों की शारीरिक और मानसिक तथा वैचारिक आजादी की बात की जाती होती है। यह गुण आदिवासी स्त्रियों में बचपन से ही मिलती है। साग तोड़ने के उपक्रम में ये जंगलों, पहाड़ों व नदियों में स्वच्छंद होकर घूमती हैं। कहती हैं कि आदिवासी समुदाय के लोग बेंग साग, फुटकल साग, चाकोड़ साग, सनई साग, कटई साग, सुनसुनियां साग, कोइनार साग, टुंपा साग, जिरहुल फूल खूब पसंद करते हैं।

इसके अलावा आलू की पत्तियां, मटर की पत्तियां चने की पत्तियों को भी साग के रूप में प्रयोग किया जाता है। अनु बताती हैं कि अभी बरसात में खेतों में कई प्रकार के साग उग आते हैं। जिसमें केना-मेना साग, सिलवरी साग, चिमटी साग खास है। इसके अलावा आदिवासियों का पसंदीदा खाद्य पदार्थों में रुगड़ा, पुट्टू, खुखड़ी और मशरूम शामिल है। अनु कहती हैं कि नई पीढ़ी को इसकी पहचान को लेकर समस्या जरूरी है और यही अब बड़ी चुनौती भी है।

इधर, दुमका में विलुप्त प्राय परंपरागत आदिवासी कठपुतली लोककला चादरबादोनी और पपेट शो का निर्माण व प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले जनमत शोध संस्थान के सचिव अशोक सिंह का कहना है कि ऐसी कलाओं को बचाने के लिए सरकार को गंभीरता से सतत प्रयास करने की आवश्यकता है। अशोक बताते हैं कि नई पीढ़ी में भी ऐसी कला से जोड़ने के लिए पहल होनी चाहिए। इससे स्वदेशी रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।

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वर्जन

राष्ट्रीय पोषण माह के तहत कई कार्यक्रम तय है। जिसमें विभिन्न खाद्य समूहों के महत्व, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भोजन, खाद्य विविधता, मोटा अनाज व इसकी रेसिपी के अलावा खिलौन आधारित खेल व शिक्षा को बढ़ावा देना, स्वदेशी खिलौना बनाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन आंगनबाड़ी केंद्रों में होना है। साथ ही योग, पंच प्राण, वसुधा वंदना व वीरों का वंदन भी इस दौरान केंद्रों पर किया जाएगा। अभियान का समापन 28 सितंबर का होगा।

अनिता कुजूर, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, दुमका

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