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Option Greeks:जानें कैसे कमा सकते हैं लाखों, एक गलती से हो सकता है बड़ा नुकसान

by The Photon News Desk
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मुंबई:  देश में शेयर बाजार में पैसा कमाने का तरीका तेजी से बदल रहा है। कई लोग इसे फुलटाइम प्रोफेशन बना चुके हैं। कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखकर लाखों की कमाई कर रहे हैं। इसमें पैसा कमाना जितना आसान है, उतना ही जोखिम भरा भी है। एक गलती से भारी नुकसान नुकसान हो सकता है। ऐसे में अगर इस नुकसान से बचना है तो इसे लिए जरूरी है कि शेयर बाजार में पैसा लगाने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लें। पहले इसे पूरी तरह समझा जाए और फिर ट्रेड शुरू किया जाए। आईए जानते हैं आप्शंन ग्रीक्स के बारे में

शेयर बाजार के जानकार भार्गव बताते हैं कि ऑप्शंस में कमाने के लिए इससे जुड़ी कुछ फैक्टरों का अध्ययन करना जरूरी होता है। ऐसे ही कुछ फैक्टरों को ऑप्शन ग्रीक कहा जाता है। इन ऑप्शन ग्रीक्स (Option Greeks) को समझना इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि ये सभी ऑप्शन के प्रीमियम पर असर डालते हैं, ये ऑप्शन प्रीमियम का मूल्य ऊपर नीचे करते रहते हैं और ऐसे में अगर किसी ऑप्शन ग्रीक्स की पूरी जानकारी नहीं होगी तो ऑप्शन ट्रेडिंग में नुकसान होना तय माना जाता है। ऑप्शन ग्रीक्स में आज बात डेल्टा (Delta), थीटा (Theta), गामा (Gama), वेगा (Vega) की करते हैं।

Option Greeks क्या होते हैं?

जानकार बताते हैं कि ऑप्शन ग्रीक्स का मतलब होता है वह ताकतें- जो ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के प्रीमियम को हर मिनट कम या ज्यादा करती रहती है। ऑप्शन ग्रीक्स में डेल्टा थीटा गामा वेगा और रो प्रमुख हैं। ये सब मिलकर कॉल और पुट ऑप्शन के प्रीमियम को ऊपर-नीचे करते रहते हैं। इसके चार प्रमुख कारक डेल्टा, थीटा, गामा व वेगा हैं।

आईए जानते हैं चारो कारकों के बारे में

डेल्टा ग्रीक यह इशारा करता है कि ऑप्शन प्रीमियम के प्राइस किस दर से ऊपर नीचे होंगे। ग्रीक थीटा यह बताता है कि एक्सपायरी में जितना समय बचा हुआ है उसके आधार पर प्रीमियम की प्राइस में कितना बदलाव होगा। बाजार के जानकारों की राय में थीटा का मतलब होता है ‘Time Value’ या ‘Time decay’. माना जाता है कि हर ऑप्शन के अलग-अलग ग्रीक्स होते हैं जिसमें सबसे महत्वूपर्ण ‘थीटा’ होता है। गामा सिर्फ डेल्टा में होने वाले बदलाव को बताता है। वेगा मार्केट की वोलैटिलिटी के आधार पर प्रीमियम के मूल्य में बदलाव को बताता है. अब थोड़ा विस्तार में समझ लेते हैं।

कारक ऐसे करते हैं काम

ऑप्शन में ट्रेडिंग के जानकार बताते हैं कि ऑप्शन्स को बाइ किया जाता है या फिर सेल किया जाता है। कहा जाता है कि थीटा ऑप्शन बायर का तो नुकसान करता है लेकिन ऑप्शन सेलर का फायदा करता है। साफ है कि थीटा ऑप्शन सेलर के पक्ष में होता है।

यू कहें तो ऑप्शन सेलर के लिए थीटा पॉजिटिव होता है जबकि ऑप्शन बायर के लिए नुकसानदायक है। लेकिन ऐसा क्यों होता है। जानकार बताते हैं कि समय बीतने के साथ अगर निफ्टी में कोई मूवमेंट नहीं हुई तो ऑप्शन खरीदने वाले को नुकसान होता रहता है क्योंकि उसके प्रीमियम की कीमत धीरे-धीरे कम होती जाती है।

एक को फायदा तो एक को होता है नुकसान

ऑप्शन ट्रेडिंग में एक आदमी का नुकसान दूसरे का फायदा होता है। मतलब यह है कि जब ऑप्शन बायर को नुकसान होता है तभी ऑप्शन सेलर पैसा कमाता है और इसी तरह इसका उल्टा भी होता है। ऑप्शन ट्रेडिंग में जो कॉल या पुट ऑप्शन कोई खरीदते हैं उसे कोई ऑप्शन सेलर बेचते हैं। इसमें ऑप्शन सेलर को कैसे फायदा होता होगा। समझिए, यदि किसी ने अपने दोस्त को कुछ दिन के लिए पैसे उधार दिए। शर्त रखी कि कुछ दिन बाद जब वह पैसा लौटाएगा तो उसे पैसे पर कुछ ब्याज देना पड़ेगा।

ठीक ऐसे ही ऑप्शन सेलर भी ऑप्शन प्रीमियम की कीमत कम करके थीटा के रूप में ब्याज लेते हैं। बाजार में कहा जाता है कि जब कोई ऑप्शन खरीदता है तो उसके पक्ष में यानी बाइंग साइड में प्रॉफिट की संभावना 33% होती है और 67% प्रॉफिट की संभावना ऑप्शन सेलर की होती है। इसलिए थीटा से बचना है जरूरी है। इसके लिए क्या किया जा सकता है। यानी अगर किसी को लगता है कि बाजार ऊपर जाएगी तो ऐसा जरूरी नहीं है कि कॉल ऑप्शन को बाय किया जाए, बल्कि पुट ऑप्शन को सेल भी किया जा सकता है. बता दें कि क्योंकि अगर बाजार ऊपर जाती है तो पुट खरीदने वाले का नुकसान होगा लेकिन अगर पुट सेल किया तो फायदा होगा। यही थीटा का पूरा कॉन्सेप्ट है।

डेल्टा के बारे में जानना क्यों है जरूरी

शेयर बाजार के विशेषज्ञ के अनुसार डेल्टा बताता है कि किसी अंडरलाइंग एसेट (निफ्टी या बैंक निफ्टी) के मुकाबले उसके प्रीमियम की वैल्यू कितनी गुना बढ़ेगी। डेल्टा की वैल्यू 0 से 1 के बीच होती है जो ATM, ITM और OTM पर अलग अलग होती है. ऑप्शन डेल्टा वैल्यू ITM (In The Money) 0.5 से 1, ATM (At The Money) 0.5 और OTM (Out The Money)0 से 0.5 के बीच होती है।

अब बात ऑप्शन ग्रीक गामा (Gamma)की

डेल्टा में बदलाव की दर को ही गामा कहा जाता है। यूं कहें तो डेल्टा में कब कितना बदलाव होगा इसे बताने का काम गामा करता है। वहीं वेगा (Vega) की बात करें तो कई बार मार्केट में वोलेटिलिटी बहुत ज्यादा होती है उस समय ऑप्शन प्रीमियम के प्राइस घटने की जगह बढ़ जाते हैं। मार्केट में वोलैटिलिटी बहुत ज्यादा होती है तो प्रीमियम बढ़ जाता है। वोलैटिलिटी के कारण प्रीमियम की कीमतों में होने वाले बदलाव को वेगा (Vega)कहा जाता है। वोलैटिलिटी की खासियत है कि यह हमेशा बायर के पक्ष में काम करती है।

यह भी पता होना चाहिए

बाजार में ऑप्शन का काम जो भी करे उसे यह पता होना चाहिए कि ATM, ITM या OTM पर जो कॉल या पुट ऑप्शन खरीदी गई है और उसके लिए जो प्रीमियम दी गई है उसकी दो वैल्यू होती हैं, एक टाइम वैल्यू और दूसरी इंट्रिनसिक वैल्यू। यदि किसी प्रीमियम को 100 रुपए पर खरीदा गया है तो यह उस प्रीमियम की टाइम वैल्यू है क्योंकि प्रीमियम की इंट्रिनसिक वैल्यू तो जीरो होती है। यानी की उसकी अपनी कोई रियल वैल्यू नहीं होती है।

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