वाराणसी : लकड़ी के खिलौने और काष्ठ शिल्प को देश और विदेश में पहचान दिलाने वाली पद्मश्री गोदावरी सिंह का मंगलवार सुबह निधन हो गया। वह 85 वर्ष की थीं और पिछले दो महीने से अस्वस्थ चल रही थीं। गोदावरी सिंह का निधन वाराणसी के खोजवां-कश्मीरी गंज स्थित उनके आवास पर हुआ। उनका अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर किया गया, जहां उनके छोटे पुत्र दीपक सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनके निधन से हस्तशिल्प समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई और अंतिम दर्शन के लिए उनके घर से घाट तक लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
गोदावरी सिंह का नाम जब भी बनारस में लकड़ी के खिलौने (वुडेन लेकवेयर) की बात होती है, सबसे पहले लिया जाता है। उन्होंने अपने जीवन के 85 साल में पुरखों की कला को संजोते हुए नई पीढ़ी में इसे बढ़ावा देने का कार्य किया। हाल ही में उन्होंने लकड़ी से बने बैगों के लिए खूब सराहना प्राप्त की थी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस में ओडीओपी कार्यक्रम में बड़ी प्रशंसा के साथ प्रस्तुत किए थे।
पद्मश्री से सम्मानित
गोदावरी सिंह की कला को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सराहा गया। उन्हें पिछले साल अप्रैल 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनका योगदान लकड़ी के खिलौना उद्योग को आगे बढ़ाने में अविस्मरणीय रहेगा। उन्होंने अपने पिता छेदी सिंह और बड़े भाई भगवान सिंह से इस शिल्प की बारीकियां सीखी थीं और छह दशकों तक इस उद्योग से जुड़ी रहीं।
हस्तशिल्प की विरासत
गोदावरी सिंह का जन्म 19 फरवरी 1941 को हुआ था। वह अपने सात बच्चों में से चार पुत्रों—योगेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह और दीपक सिंह—के माध्यम से अपनी हस्तशिल्प की विरासत को आगे बढ़ा रही थीं। उनका नाती राजसिंह कुंदेर हमेशा अपने नाना के साथ रहता था और हस्तशिल्प को ऊंचाई पर पहुंचाने के विचारों को साझा करता था।