नई दिल्ली : अर्जुन पुरस्कार के लिए चुनी गई पैरालंपिक कांस्य पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी नित्या श्री सुमति सिवन के लिए यह सम्मान उनके जीवन के संघर्षों और अवसाद से जूझते हुए हासिल की गई उपलब्धि का प्रतीक है। 19 वर्षीय नित्या के लिए यह पुरस्कार उन कठिन दिनों की याद दिलाता है, जब स्कूल में उन्हें शरारतों का सामना करना पड़ा और वे मानसिक तनाव में रहने लगीं।
स्कूल के कठिन दिनों से अर्जुन पुरस्कार तक का सफर
नित्या ने पीटीआई से बातचीत करते हुए कहा, “जब मैं छठीं या सातवीं कक्षा में थी, तब मेरा शारीरिक विकास रुक गया था। स्कूल में मेरे खिलाफ शरारत होती थी, जिससे मैं बहुत दुखी रहती थी।” वे बताती हैं कि उन दिनों में वे हर छोटी बात पर रोने लगती थीं, लेकिन अब अर्जुन पुरस्कार ने उन्हें वह सम्मान दिया है जिसकी वे हकदार थीं। यह पुरस्कार उन लोगों को एक तरह का जवाब है जिन्होंने उनका मजाक उड़ाया था।
नित्या ने कहा, “मैंने अपने कई साथियों को देखा जो पुरस्कार जीत रहे थे, और यह मुझे प्रेरित करता था। अब मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है, यह मेरे लिए गर्व का क्षण है।”
बैडमिंटन ने दी आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास
तमिलनाडु के होसुर में जन्मी नित्या ने अपनी मां को एक साल की उम्र में खो दिया था, और उनका पालन-पोषण उनके पिता और दादी ने किया। नित्या कहती हैं, “मेरे पिता हमेशा मुझे खेलों के लिए प्रेरित करते थे, ताकि मैं घर से बाहर निकल सकूं। बैडमिंटन ने मुझे आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाया।”
उन्होंने क्रिकेट से बैडमिंटन की ओर रुख किया, जब उन्होंने रियो ओलंपिक में बैडमिंटन को पहली बार देखा। उसके बाद से यह खेल उनका जुनून बन गया। नित्या ने बताया, “2016 में सिंधु को देखकर मुझे प्रेरणा मिली और मैंने अपने दोस्तों के साथ गली में बैडमिंटन खेलना शुरू किया।”
कड़ी मेहनत और समर्पण से मिली सफलता
नित्या ने कोविड के दौरान अभ्यास नहीं किया, लेकिन महामारी के बाद उन्होंने लखनऊ में भारतीय टीम के मुख्य कोच गौरव खन्ना के तहत पैरा बैडमिंटन की ट्रेनिंग शुरू की। अब वे अपने गृह नगर के पास प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी (पीपीबीए) में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं।
भविष्य के लक्ष्य
नित्या का अगला लक्ष्य 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में अपने खेल के चरम पर पहुंचने का है। उन्होंने कहा, “इस साल एशियाई चैंपियनशिप और अगले साल विश्व चैंपियनशिप मेरी प्रमुख योजनाओं में से एक हैं।”