पटना : बिहार के दरभंगा जिले के बेनीपुर में दो इंजीनियरों की हत्या के मामले में पटना हाईकोर्ट ने सजा प्राप्त सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इनमें वह आरोपी भी शामिल हैं जिनमें मुख्य आरोपी मुकेश पाठक, जो कि पहले इस मामले में उम्रकैद की सजा प्राप्त कर चुका था, शामिल हैं। हाईकोर्ट ने यह फैसला ठोस और पर्याप्त सबूत के अभाव में सुनाया। न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई अक्टूबर 2024 में पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे अब आज सुनाया गया।
दरभंगा की अदालत ने दी थी उम्रकैद की सजा
यह मामला 26 दिसंबर 2015 का है, जब दरभंगा के बेनीपुर अनुमंडल के शिवराम गांव में दो इंजीनियरों – ब्रजेश कुमार सिंह और मुकेश कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी। दोनों निजी सड़क निर्माण कंपनी में इंजीनियर के तौर पर कार्यरत थे। उनके हत्यारे थे कुख्यात गैंगस्टर संतोष झा और मुकेश पाठक। दरभंगा की एक अदालत ने इस मामले में कुल दस आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इनमें से मुकेश पाठक और संतोष झा मुख्य आरोपी थे। अदालत ने इन आरोपियों पर आर्थिक दंड भी लगाया था।
हत्या की वजह – रंगदारी
मामले में आरोप था कि कुख्यात गैंगस्टर संतोष झा और उनके गिरोह ने दोनों इंजीनियरों की हत्या इसलिए की, क्योंकि उन्होंने रंगदारी की रकम नहीं दी थी। उस वक्त संतोष झा जेल में बंद था, जबकि मुकेश पाठक गिरोह का संचालन कर रहा था। हत्या के समय ये इंजीनियर अपने-अपने निजी सड़क निर्माण प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे थे। इस हत्याकांड ने उस समय प्रदेशभर में हड़कंप मचा दिया था और यह मामले में खूब चर्चा हुई थी।
हाईकोर्ट ने दिए बरी करने के आदेश
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की समीक्षा करते हुए पाया कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त ठोस सबूत नहीं थे। कोर्ट ने पाया कि अभियुक्तों के खिलाफ कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिला, जो उनकी अपराधों में संलिप्तता को साबित करता हो। इसके परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले के बाद मामले में सजा पाने वाले मुकेश पाठक सहित अन्य सभी आरोपियों को राहत मिली।
आर्थिक दंड और सजा
दरभंगा की अदालत ने दोषियों को सजा के साथ-साथ आर्थिक दंड भी लगाया था। संतोष झा, मुकेश पाठक, विकास झा, निकेश दुबे, अभिषेक झा, और संजय लाल देव पर 20-20 हजार रुपये का आर्थिक दंड लगाया गया था। जबकि अन्य चार दोषियों – अंचल झा, टूना झा, सुबोध दुबे और ऋषि झा पर 15 हजार रुपये का दंड लगाया गया था। हालांकि, इन चारों को भी अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
गिरोह का इतिहास और गिरफ्तारी
इस गिरोह का इतिहास बेहद क्रूर था। बिहार पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने मुकेश पाठक को 11 जून 2016 को झारखंड के रामगढ़ से गिरफ्तार किया था। इन गिरोह के सदस्य पूरे बिहार में व्यापारियों और कंपनियों से रंगदारी वसूलते थे और कई हत्याओं में शामिल थे। इनके खिलाफ बिहार के विभिन्न हिस्सों में 30 से अधिक हत्या और रंगदारी के मामले दर्ज थे। यह गिरोह राज्य में एक समय बड़ा आतंक फैला चुका था।
न्याय व्यवस्था पर सवाल
पटना हाईकोर्ट का यह फैसला कई सवाल खड़ा करता है, खासकर न्याय व्यवस्था में सबूतों की महत्ता को लेकर। इस मामले में जहां एक तरफ निचली अदालत ने आरोपियों को सजा दी थी, वहीं उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। यह घटनाक्रम यह साबित करता है कि न्याय व्यवस्था में दोषियों को सजा दिलाने के लिए ठोस और पर्याप्त प्रमाण होना आवश्यक है। यदि किसी मामले में यह प्रमाण नहीं होते, तो दोषियों को बरी किया जा सकता है, जैसा कि इस मामले में हुआ।
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