देवघर : पावेश्वर धाम शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि यह स्थल भगवान शिव के विशेष तपस्थलों में एक है। शिव पुराण के अनुसार, जब रावण बैद्यनाथ धाम में भगवान भोलेनाथ को स्थापित कर चुका था, तो उन्हें पुनः प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर गड्ढा खोदकर लंबी तपस्या की थी। उसी स्थान पर गर्भगृह में स्थित गुफा में शिवलिंग की स्थापना मानी जाती है।
पावेश्वर धाम की चमत्कारी कहानी : जहां जलाभिषेक का जल रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता है!
इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि श्रद्धालु जब शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तो वह जल कहां जाता है, यह आज तक रहस्य बना हुआ है। मंदिर के पुजारी पंडित मृत्युंजय झा बताते हैं कि चार पीढ़ियों से उनकी वंश परंपरा इस मंदिर में पूजा कर रही है और यह स्थान अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण माना जाता है।
Paveshwar Dham : यहां सांप दिखते हैं पर डसते नहीं : रहस्यों से भरा पावेश्वर धाम!
मंदिर के आसपास कई सांपों का देखा जाना आम है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब तक किसी श्रद्धालु को सर्पदंश नहीं हुआ है। यह भी एक प्रमुख कारण है, जिससे श्रद्धालु इस स्थान को चमत्कारी मानते हैं।
Paveshwar Dham : पातालेश्वर से पावेश्वर धाम तक का नाम परिवर्तन
प्राचीन काल में इस मंदिर को पातालेश्वर धाम कहा जाता था। कालांतर में इसका नाम दिगंबर धाम हुआ और अब यह पावेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के आगे और पीछे श्मशान भूमि है, जिससे इसकी आध्यात्मिक महत्ता और भी अधिक मानी जाती है।
उर्ध्वमुखी द्वार और पहाड़ों से घिरा मंदिर
मंदिर का प्रवेश द्वार ‘उर्ध्वमुखी’ है, जो ऊपर की ओर खुलता है। मंदिर की स्थापना की सटीक तिथि किसी के पास नहीं है, लेकिन इसके अस्तित्व को लेकर अनेक पुरातन मान्यताएं और चमत्कारी अनुभव स्थानीय लोगों ने साझा किए हैं।
मंदिर विस्तार की योजना और भगवान की मर्जी
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता बीरेंद्र मंडल के अनुसार, मंदिर को भव्य रूप देने के कई प्रयास हुए, लेकिन पुजारियों को आए सपनों के अनुसार, भगवान भोलेनाथ ने संकेत दिया कि यदि मंदिर का निर्माण करना है तो उसका गुंबद पहाड़ से ऊंचा होना चाहिए, अन्यथा इसे मूल स्वरूप में ही रहने दिया जाए।
श्रद्धालुओं की भीड़ और राज्य सरकार से अपेक्षा
श्रावण मास, सोमवारी और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। लेकिन, अब भी मंदिर तक पहुंचने का रास्ता और आसपास के क्षेत्रों में विकास की आवश्यकता है। स्थानीय लोगों ने राज्य सरकार और पर्यटन विभाग से मंदिर के प्रचार-प्रसार और जीर्णोद्धार के लिए मांग की है।