Home » शहरनामा : लोहा गरम, हथौड़ा चला

शहरनामा : लोहा गरम, हथौड़ा चला

by The Photon News Desk
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

राजनीति की गर्माहट इस बार सबसे ज्यादा कोयले की भट्ठी में देखने को मिल रही है। यहां जो आग पहले से सुलग रही थी, अब उसकी ज्वाला बेकाबू होकर फैल रही है। पता नहीं, इसकी आग से कौन-कौन झुलसेगा। वैसे राजनीति के पंडित कहते हैं कि जब लोहा गरम हो, तभी हथौड़ा चलाना चाहिए। सो अपने चाचा भट्ठी में जलावन झोंक रहे हैं, जिससे लोहा गरम होते-होते खुद ही पानी बन जाए। हथौड़ा तो पब्लिक ही चलाएगी, भले लोहा पानी बने या किसी की रोटी पक जाए।

POLITICS SAHITYA: बेचारे गुरुजी की कौन सुनेगा

एक गुरुजी शहर में पहले धन प्रबंधन का पाठ पढ़ाते थे। कुछ दिनों बाद उन्हें राजनीति पढ़ाने का मौका मिला। मूढ़ जनता को उनकी पढ़ाई में रुचि ही नहीं आई, तो गुरुजी ही यहां से तड़ीपार हो गए। राजधानी जाकर खूब भौंकने का मौका मिला, तो हाथ ने उन्हें एक मौका उनके गृह जिला में दिया। दुख की बात रही कि वहां की जनता ने भी उनकी पढ़ाई को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया। अंत में गुरुजी को समझ आया कि बहती गंगा में ही डुबकी लगाना ठीक है।

बाट जोहते पथरा गईं आंखें

पूरे देश में चुनावी महापर्व का डंका बज रहा है। अपने यहां भी सरकार जबरदस्त उत्साह में दिख रही है, लेकिन असल चीज ही गायब है। लौहनगरी सहित सारंडा की धरती की आंखें बाट जोहते-जोहते पथरा गई हैं। आज-कल करते करते रात बीत रही है, लेकिन अखाड़े का दूसरा पहलवान कौन होगा, पता ही नहीं चल रहा है। पता चला है कि इसी बीज यहां किसी स्वयंभू नेता ने दावा कर दिया है कि तीर तो हम ही छोड़ेंगे। जगह-जगह माथा टेकना भी शुरू कर दिया है।

तेंदुआ आया-तेंदुआ आया…

आपने अभी तक भेड़िया आया-भेड़िया आया… वाली कहानी सुनी थी, अब लौहनगरी के लोगों ने तेंदुआ आया-तेंदुआ आया… भी सुन लिया। एक तेंदुआ गम्हरिया में अवतरित हुआ था, जिससे वहां एक सप्ताह तक सबकी हवा-पानी गुम थी। जब वहां के लोग चैन की सांस लेने लगे, तो वही तेंदुआ… अपनी लौहनगरी में आ गया। यहां भी सरकारी महकमा खूब उछला। पिंजरा और गोली-बंदूक के साथ सेना उतार दी, लेकिन वह आया भी था कि नहीं, यह भी पता नहीं चला।

वीरेंद्र ओझा

वीरेंद्र ओझा

READ ALSO : शहरनामा : यदा यदा हि धर्मस्य

Related Articles