रांची: कांग्रेस प्रवक्ताओं की कार्यशाला में झारखंड की कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने जनसंख्या आधारित परिसीमन को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यशाला में उन्होंने कहा कि अगर पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों में आरक्षित सीटों के निर्धारण का आधार जनसंख्या को बनाया गया, तो इससे आदिवासी समाज को आरक्षण में नुकसान होगा। वहीं उनके राजनीतिक अधिकारों में कटौती होगी।
बाहरी लोगों की आबादी बढ़ी
शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि झारखंड जैसे राज्यों में समय के साथ बाहरी लोगों की आबादी बढ़ी है, जबकि आदिवासी समाज की जनसंख्या स्थिर रही है या घटी है। ऐसे में परिसीमन का आधार जनसंख्या बनने से अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या घट सकती है, जिससे उनके सामाजिक और राजनीतिक संरक्षण को गहरी चोट पहुंचेगी।
चुनौतियों को लेकर चर्चा
इस कार्यशाला में जातिगत जनगणना से देश के आदिवासी समाज पर पड़ने वाले प्रभाव, चुनौती और समाधान विषय पर चर्चा की गई। इस अवसर पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी विशेष संबोधन दिया। शिल्पी तिर्की ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस जातीय जनगणना को सामाजिक न्याय के औजार के रूप में देखती है और इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। जबकि केंद्र की भाजपा सरकार और संघ इस प्रक्रिया को उलझाने और आदिवासी समाज को विभाजित करने में लगे हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आदिवासी समाज की कोई जातीय व्यवस्था नहीं रही है और जनगणना में उनकी पहचान को मूल और एकीकृत रूप में ही दर्ज किया जाना चाहिए। उप-वर्गों में बांटने से उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने यह भी मांग की कि जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कॉलम दिया जाए, जिससे आदिवासियों की धार्मिक पहचान को मान्यता मिल सके।
शिल्पी तिर्की ने यह भी कहा कि आदिवासी समाज केवल सांस्कृतिक रूप से ही नहीं, बल्कि दिल और आत्मा से भी एकजुट है, चाहे वह झारखंड हो, मणिपुर, ओडिशा या छत्तीसगढ़। देश के किसी भी हिस्से में आदिवासी समुदाय पर हमला पूरे देश के आदिवासी समाज की पीड़ा बन जाती है।