Ranchi (Jharkhand) : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को रामचंद्र चंद्रवंशी विश्वविद्यालय (RCU) के दूसरे दीक्षांत समारोह में डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया, लेकिन इस सम्मान ने अब राजनीतिक गलियारों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने इसे ‘राजनीतिक सौदेबाज़ी’ बताते हुए तीखा हमला बोला है।
‘मानद उपाधि एहसान का प्रतिफल’: धीरज दुबे
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के मीडिया पैनलिस्ट और केंद्रीय सदस्य धीरज दुबे ने इस मानद उपाधि पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए कहा, “रघुवर सरकार में रामचंद्र चंद्रवंशी स्वास्थ्य मंत्री थे। उसी दौरान रघुवर दास ने उनके निजी विश्वविद्यालय को मान्यता दी थी। यह मानद उपाधि उसी एहसान का प्रतिफल है।” दुबे ने इसे एक गहरी राजनीतिक साठगांठ का हिस्सा करार दिया।
‘यह शैक्षणिक नहीं, राजनीतिक समीकरणों पर आधारित सम्मान’
धीरज दुबे का स्पष्ट कहना है कि रघुवर दास को दी गई यह उपाधि उनके शोध, शिक्षा या समाजसेवा में किसी असाधारण योगदान के आधार पर नहीं, बल्कि विशुद्ध रूप से राजनीतिक समीकरणों के तहत दी गई है।
उन्होंने आगे कहा, “यह उन सैकड़ों छात्रों और शिक्षाविदों का अपमान है जो वर्षों की अथक मेहनत से यह उपाधि हासिल करते हैं। अकादमिक समुदाय का एक बड़ा वर्ग भी विश्वविद्यालय के इस निर्णय से असहज और खिन्न महसूस कर रहा है।”
‘शिक्षा की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा ऐसा फैसला’
JMM नेता धीरज दुबे ने चेतावनी दी कि इस तरह की मानद उपाधियां शैक्षणिक संस्थानों की साख को गंभीर ठेस पहुंचाती हैं और भविष्य में शिक्षा क्षेत्र की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करती हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा, “मानद उपाधियां केवल उन्हीं महानुभावों को मिलनी चाहिए जिन्होंने शिक्षा, विज्ञान, कला या समाजसेवा के किसी क्षेत्र में अतुलनीय और निस्वार्थ योगदान दिया हो। राजनेताओं को इस तरह का सम्मान देना शैक्षणिक परंपरा और शिक्षा व्यवस्था का सीधा उपहास है।”
विश्वविद्यालय पर भी गंभीर आरोप
धीरज दुबे ने इस विवाद के बीच रामचंद्र चंद्रवंशी विश्वविद्यालय पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया, “यह संस्थान नामांकन के दौरान विद्यार्थियों से उनके मूल शैक्षणिक प्रमाण पत्र (ओरिजिनल डॉक्यूमेंट्स) रखवा लेता है और अगर छात्र बीच में पढ़ाई छोड़ते हैं, तो पूरे सत्र की फीस न देने तक उनके दस्तावेज लौटाने से इनकार कर देता है।”
अपनी बात समाप्त करते हुए धीरज दुबे ने एक बड़ा सवाल उठाया—”क्या अब हमारे शिक्षण संस्थान भी राजनीतिक दबाव और समीकरणों के अधीन काम कर रहे हैं?” उन्होंने कहा कि अगर मानद उपाधियां केवल राजनीतिक कारणों से ही दी जाएंगी, तो यह पूरे शैक्षणिक जगत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, जो उच्च शिक्षा के मूल्यों को कमजोर करेगा।
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