लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में कर्मचारियों की भर्ती को लेकर भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगे हैं। यह खबर प्रकाश में आने के बाद, विपक्षी दलों ने भाजपा पर परिवारवाद (family politics) के आरोप लगाए हैं। यह खुलासा सामने आने के बाद मामला तूल पकड़ गया है, जिसमें कहा गया कि विधानसभा और विधान परिषद के 186 रिक्त पदों में से 20 फीसदी पदों पर उम्मीदवारों के परिवारिक रिश्ते थे।
क्या है मामला?
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा रिपोर्ट की गई इस खबर के अनुसार, समीक्षा अधिकारी (RO) और सहायक समीक्षा अधिकारी (ARO) के 186 पदों में से 38 पर चयनित उम्मीदवारों के किसी न किसी प्रकार के रिश्ते थे। इन उम्मीदवारों में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष के पीआरओ (जनसंपर्क अधिकारी) के भाई, पूर्व मंत्री के भतीजे, विधान परिषद के सचिवालय प्रभारी के बेटे, और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के रिश्तेदार शामिल हैं। इस भर्ती प्रक्रिया में लगभग 2.5 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था, जिनकी परीक्षा 2020-2021 के बीच आयोजित की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, ये चयनित उम्मीदवार सीधे तौर पर राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों के परिवारों से जुड़े थे।
विपक्ष का आरोप
समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस ने इस मामले में भाजपा पर जमकर हमला बोला है। समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने कहा कि भाजपा ने इस भर्ती प्रक्रिया में परिवारवाद को बढ़ावा दिया है, जबकि कांग्रेस के नेता अशोक सिंह ने निष्पक्ष जांच की मांग की है। राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने भी इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे देश के लिए धोखा करार दिया है। उन्होंने कहा, “यह केवल 20 से 25 फीसदी गड़बड़ियां पकड़ी गई हैं, लेकिन हकीकत में बहुत बड़ा खेल हो रहा है।”
अदालत में मामला
इस भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सितंबर 2023 में सीबीआई जांच का आदेश दिया था। अदालत ने यह आदेश दिया था कि जांच की जाए कि क्या भर्ती प्रक्रिया निष्पक्ष रही थी या नहीं। अदालत ने इस मामले में गंभीर चिंता जताई थी कि 2019 में भर्ती एजेंसी को बदला गया, जबकि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पहले से उपलब्ध थे। कोर्ट ने इसके अलावा कुछ अभिलेखों की भी जांच करने का आदेश दिया था।
सीबीआई जांच पर उच्चतम न्यायालय का फैसला
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने 14 अक्टूबर 2023 को इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2025 को तय की है। अब देखना यह होगा कि क्या सीबीआई इस मामले में निष्पक्ष जांच कर पाती है या नहीं।
क्या है भाजपा का पक्ष?
इस मामले पर प्रतिक्रिया देने के लिए संपर्क किए जाने पर, उत्तर प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि यह मामला अदालत में लंबित है, इसलिए वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। वहीं, अन्य भाजपा नेताओं से भी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।
उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद की भर्ती प्रक्रिया पर उठे सवाल अब राजनीतिक रूप से गर्म हो गए हैं। अदालत की जांच, विपक्ष के आरोप और भाजपा का बचाव इस मामले को और भी दिलचस्प बना रहे हैं। आने वाले समय में यह मामला उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में भी प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यह परिवारवाद और भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर बड़े सवाल खड़ा करता है।