RANCHI (JHARKHAND): राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स की व्यवस्था सुधारने को लेकर हर साल स्वास्थ्य विभाग करोड़ों रुपये खर्च करता है। इसके बावजूद मरीजों को अव्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है। अब स्वास्थ्य विभाग ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए रिम्स 3,51,13,11,000 की राशि स्थापना व्यय मद में सहायता अनुदान के रूप में स्वीकृत की है। यह राशि संस्थान के संचालन, कार्मिक व्यय और आधारभूत ढांचे की आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से आवंटित की गई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इतनी राशि मिलने के बाद हॉस्पिटल की व्यवस्था में सुधार आएगा। क्या मरीजों को इसका लाभ मिल पाएगा।।
आवंटन का ये है उद्देश्य
रिम्स को दिए गए इस आवंटन का उद्देश्य रिम्स में मरीजों की देखभाल की सेवाओं को गुणवत्तायुक्त बनाए रखना है। इसके अलावा मेडिकल एजुकेशन और रिसर्च को भी बेहतर बनाना है। जिससे कि इस संस्थान की बेहतर छवि बने। राज्य सरकार ने यह भी निर्देश दिया है कि इस अनुदान का उपयोग पारदर्शी और प्रभावी ढंग से किया जाए। इसके अलावा विभाग ने यह भी निर्देश दिया है कि इसका व्यय प्रतिवेदन विधिवत रूप से विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
पिछले साल मिले थे 465 करोड़
रिम्स को पिछले साल स्वास्थ्य विभाग की ओर से 465 करोड़ रुपये मिले थे। विभाग की ओर से बताया गया है कि पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में रिम्स को कुल 4,65,00,00,000 की सहायता अनुदान राशि प्रदान की गई थी, जिसमें से 2,17,85,12,912 की राशि पूर्व से अवशेष थी। इस प्रकार कुल उपलब्ध राशि 6,82,85,12,912 रही, जिसके विरुद्ध 4,36,40,24,556 राशि का उपयोग किया गया।
दूसरे राज्यों के मरीज आते है इलाज कराने
रिम्स राज्य का प्रमुख मेडिकल संस्थान है जहां झारखंड के अलावा बिहार, ओडिशा, बंगाल व आसपास के राज्यों के हजारों मरीज इलाज कराने के लिए आते है। इलाज के अलावा मरीजों को दवाएं और अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराने का निर्देश दिया गया है। बता दें कि हॉस्पिटल के ओपीडी में हर दिन लगभग 1700 मरीज इलाज के लिए आते है। वहीं ओपीडी में 300 के करीब मरीज इलाज को पहुंचते है। इनडोर में भी हमेशा 1500 से ज्यादा मरीज इलाज के लिए भर्ती रहते है।
डिस्पेंसरी में दवाओं का टोटा
हॉस्पिटल में लंबे समय से डिसपेंसरी का संचालन हो रहा है। वहां पर दवाएं मरीजों को मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए फार्मासिस्ट व अन्य स्टाफ तैनात है। इसके बावजूद दो दर्जन दवाएं भी उपलब्ध नहीं है। अब सवाल ये उठता है कि इतना बड़ा बजट होने के बावजूद मरीजों को दवाएं फ्री में क्यों उपलब्ध नहीं कराई जाती।
कॉटन, सिरिंज भी खरीदकर लाते है मरीज
सालाना करोड़ों रुपये के बजट वाले इस हॉस्पिटल में दवा और अन्य जरूरी सामग्री की खरीदारी पर भी करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा प्रबंधन करता है। साथ ही ये भी दावे किए जाते है कि दवाओं का भरपूर स्टॉक है। इसके बावजूद मरीजों के परिजनों से सिरिंज और कॉटन तक मंगाए जाते है। इसके अलावा इंप्लांट व अन्य सामान के लिए भी मरीजों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर की दौड़ लगानी पड़ती है।
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