सेंट्रल डेस्क, नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता कानून लागू कर सकती है। गत मंगलवार को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM MODI) के संबोधन के बाद यह कयास तेजी से लगाये जा रहेें हैं। कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री (PM MODI) ने कहा कि ‘एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम हो सकते हैं क्या,ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है। कहता है कॉमन सिविल कोड लाओ, लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं।’
प्रधानमंत्री (PM MODI) ने कहा कि यूसीसी(UCC) के नाम पर मुस्लिम समाज काे भड़काने का काम हो रहा है। इससे पहले 22 वें विधि आयोग ने 14 जून को यूसीसी(UCC) पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों से सुझाव मांगे हैं। विभिन्न पक्षों से 30 दिनों के अंदर अपनी राय देने के लिए कहा गया है। ऐसे में यह मुद्दा देशभर में एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
प्रधानमंत्री ने कैसे बोला विरोधियों पर हमला
केंद्र सरकार की ओर से ट्रिपल तलाक पर लाये गये कानून का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री (PM MODI) ने कहा कि “जो ‘ट्रिपल तलाक़’ की वकालत करते हैं, वे वोट बैंक के भूखे हैं और मुस्लिम बेटियों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। ‘ट्रिपल तलाक़’ न सिर्फ़ महिलाओं की चिंता का विषय है, बल्कि यह समूचे परिवार को नष्ट कर देता है।” उन्होंने कहा कि, “जब किसी महिला को, जिसका निकाह बहुत उम्मीदों के साथ किसी शख्स से किया गया था, ‘उसे ट्रिपल तलाक़’ देकर वापस भेज दिया जाता है। बेटियों के घर लौटने पर पूरा परिवार परेशानी में पड़ता है”। “कुछ लोग मुस्लिम बेटियों के सिर पर ‘ट्रिपल तलाक़’ का फंदा लटकाए रखना चाहते हैं, ताकि उन्हें उनका शोषण करते रहने की आज़ादी मिल सके।”
देश में कैसे शुरू हो गयी यूसीसी पर बहस
प्रधानमंत्री (PM MODI) की सभा खत्म होने के बाद देश में यूसीसी(UCC) को लेकर बहस शुरू हो गयी। तमाम विपक्षी दलाें के नेताओं ने अपने-अपने तरीके से सवाल उठाये। समाज के अलग-अलग वर्ग से भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग बैठकों का दौर शुरू हो गया है। कुछ मुस्लिम और आदिवासी समाज के संगठन यूसीसी के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं।
वहीं कानून के जानकार लोगों का मानना है कि प्रस्तावित कानून का मसौदे देखे बगैर विरोध या समर्थन करना अतार्किक है। मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने-अपने तरीके से सवाल उठाये।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुरेंद्र मोहन मिश्रा बताते हैं कि यूनिफाॅर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि हर धर्म, हर जाति, हर संप्रदाय और हर वर्ग के लिए एक समान नियम हो। दूसरे शब्दों में पूरे देश में एक समान कानून हो। सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाद, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे।
संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गयी है। अनुच्छेद 44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में धार्मिक लोकतांत्रिक गणराज्य के सिद्धांत का पालन करता है। वर्तमान में देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान अपराधिक संहिता है लेकिन एक समान नागरिक कानून नहीं है।
हिंदू धर्म मानने वालों के लिए हिंदू पर्सनल लॉ, मुस्लिम समाज के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ का प्रावधान है। अधिवक्ता दिनेश साहू कहते हैं कि ‘हिंदू पर्सनल लॉ में काफ़ी सुधार हुए हैं, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ में कभी नहीं हुए। ’ मसलन साल 2005 के बाद से हिंदू क़ानून के तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में हक़ मिला। अब सवाल ये उठता है कि क्या हिंदू पर्सनल लॉ को समान नागरिक संहिता के लिए मानक माना जा सकता है।
विरोध की बड़ी वजह : आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं। पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना, दूसरा अयोध्या में राममंदिर का निर्माण और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना शामिल है। दो एजेंडे पर काम हो चुका है। अब बीजेपी यूनिफाॅर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दे रही है। ऐसे में विपक्ष को लगता है कि सरकार नये कानून के तहत एक बार फिर देश में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करना चाहती है। कानून के विरोधियों की ओर से दावा यह भी किया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता के बहाने ‘हिंदू नागरिक संहिता’ लागू की जा सकती है।
यूसीसी पर कौन दल, किस तरफ खड़ा है
भाजपा-आरएसएस :भाजपा, आरएसएस सहित हिंदूवादी संगठन एक लंबे अरसे से एक देश में सभी लोगों के लिए समान क़ानून की मांग कर रहे हैं। इसमें सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून प्रावधान की मांग की जा रही है। संगठनों का दावा है कि एक देश के सभी नागरिकों के लिए एक कानून होना चाहिये।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड : पीएम मोदी (PM MODI) के संबोधन के कुछ घंटों के बाद ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूसीसी के ख़िलाफ़ दस्तावेज़ पर चर्चा की है। समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ख़ालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इस बैठक में यूसीसी पर आपत्ति संबंधी मसौदा दस्तावेज़ पर चर्चा हुई लेकिन इस नियमित बैठक को पीएम मोदी के भाषण से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “भारत एक ऐसा देश है जहां कई धर्मों और संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते हैं, इसलिए यूसीसी (UCC) न केवल मुसलमानों को प्रभावित करेगा, बल्कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, यहूदी, पारसी और अन्य छोटे अल्पसंख्यक वर्ग भी इससे प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि बोर्ड यूसीसी(UCC) पर विधि आयोग के सामने 14 जुलाई से पहले ही अपनी आपत्ति दाखिल कर देगा।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक गैर-सरकारी संगठन है जो पर्सनल लॉ के मामलों में मुसलमानों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।
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मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन : असदउद्दीन ओवैसी ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समान नागरिक संहिता की नहीं बल्कि ‘हिंदू नागरिक संहिता’ की बात कर रहे हैं। हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ़) पर ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा है। ओवैसी ने पूछा है कि क्या यूसीसी आने पर हिंदू अविभाजित परिवार को ख़त्म किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इससे देश को हर साल 3000 करोड़ रुपये से अधिक का नुक़सान झेलना पड़ रहा है।
कांग्रेस : कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अगर यूसीसी लागू हुआ तो आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं का क्या होगा।सीएम बघेल ने कहा, “आप (बीजेपी) हमेशा हिंदू-मुसलमान दृष्टिकोण क्यों सोचते हैं? छत्तीसगढ़ में आदिवासी हैं।उनके नियम रूढ़ी परंपरा के हिसाब से हैं।वो उसी से चलते हैं।अब समान नागरिक संहिता कर देंगे तो हमारे आदिवासियों की रूढ़ी परंपरा का क्या होगा।.”
पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति : असदउद्दीन ओवैसी ने साल 2016 में भी कहा था कि यूसीसी सिर्फ़ मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों, ख़ासतौर पर नगालैंड और मिज़ोरम में भी विरोध होगा। ओवैसी के बयान के पीछे एक बड़ा आंकड़ा था। साल 2011 की जनगणना के अनुसार नगालैंड में 86.46 फ़ीसदी, मेघालय में 86.15 फ़ीसदी और त्रिपुरा में 31.76 फ़ीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति है। ये आंकड़े अपने आप में पूर्वोत्तर के इन राज्यों में आदिवासी आबादी की अहमियत को दिखाते हैं। मेघालय में आदिवासी परिषद ने यूसीसी को लागू किए जाने के विरोध में प्रस्ताव पास किया। नगालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) और नगालैंड ट्राइबल काउंसिल (एनटीसी) ने भी यूसीसी को लेकर चिंता जताई हैं।