रांची। झारखंड की राजनीति में इन दिनों एक नया आलाप देखने को मिल रहा है। जिसका नाम है- सरना धर्म कोड। इसे लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और नारे लगाए जा रहे है। राज्य के आदिवासी समुदाय की मांग है कि जब तक सरना धर्म कोड लागू नहीं किया जाता, तब तक जनगणना भी नहीं होने दिया जाएगा। ऐसे में गैर आदिवासी या जो इस मामले से परिचित नहीं है, उनके लिए यह एक सवाल बन चुका है। आखिर क्या है सरना धर्म कोड और क्या है इसकी झारखंड की राजनीति में महत्वता। इस लेख में हम यह जानेंगे।
राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के प्रवक्ता संजय पाहन का कहना है कि यह आदिवासियों के धार्मिक अस्तित्व की लड़ाई है, जो जल, जंगल, जमीन व संवैधानिक हक की बात करता है। अपने इस अधिकार को हासिल करने के लिए ‘चलें गांव की ओर’ नाम से राष्ट्रीय सरना धर्म न्याय यात्रा का आयोजन शीघ्र ही किया जाएगा। जिसकी शुरुआत ओडिशा से होगी।
क्या है सरना धर्म कोड?
सरना धर्म कोड एक ऐसा प्रस्तावित पहचान कोड है, जिसे झारखंड के आदिवासी समुदायों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को अलग से मान्यता देने के लिए तैयार किया गया है। वर्तमान में जनगणना में आदिवासी धर्मों को ‘हिंदू’ धर्म के अंतर्गत गिना जाता है, जिससे उनकी विशिष्ट पहचान दब जाती है। सरना धर्म कोड के माध्यम से आदिवासियों को ‘सरना धर्म’ के नाम से अलग धार्मिक दर्जा देने की मांग की जा रही है।
सरना धर्म का इतिहास और परंपरा
सरना धर्म झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और बिहार के आदिवासी समुदायों में प्रचलित एक धार्मिक विश्वास है। जिसका आदिवासी समुदाय पूरी तन्मयता से पालन करता है।
• सरना शब्द का अर्थ होता है ‘पवित्र वन’।
• आदिवासी समुदाय पेड़ों, नदियों, पहाड़ों और प्रकृति की पूजा करते हैं।
• उनका कोई लिखित धर्मग्रंथ नहीं होता, बल्कि यह परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से चली आती हैं।
• सरना धर्म के अनुयायी प्रकृति के रक्षक होते हैं और पर्यावरण संरक्षण को अपना धर्म मानते हैं।
राजनीति में सरना धर्म कोड का महत्व
झारखंड में सरना धर्म कोड सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक हथियार बन गया है।
• नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से केंद्र को प्रस्ताव भेजा कि जनगणना 2021 में सरना धर्म को अलग कोड के रूप में मान्यता दी जाए।
• झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां इसका समर्थन करती रही हैं।
• BJP का रवैया इस मुद्दे पर अस्पष्ट रहा है, जिससे आदिवासी समुदाय में नाराजगी देखी गई।
सरना कोड का झारखंड की राजनीति पर प्रभाव
सरना धर्म कोड ने झारखंड में एक नया राजनीतिक समीकरण बनाया है:
• यह मुद्दा आदिवासी वोट बैंक को सीधे प्रभावित करता है।
• झारखंड की करीब 26% आबादी आदिवासी है, और इनकी धार्मिक पहचान का सवाल चुनावों में अहम भूमिका निभाता है।
• विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती हैं कि वह सरना कोड को सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाकर छोड़ देती है।
जनगणना और सरकारी योजनाओं पर असर
अगर सरना धर्म कोड को आधिकारिक मान्यता मिलती है, तो इसके कई प्रभावी सामाजिक और प्रशासनिक परिणाम हो सकते हैं:
• अलग धर्म कोड मिलने से आदिवासियों की जनसंख्या सटीक रूप से दर्ज हो सकेगी।
• सरकार आदिवासियों के लिए विशेष योजनाएं और बजट बना सकेगी।
• इससे आदिवासी समुदायों में सशक्तिकरण की भावना बढ़ेगी।
डिजिटल दौर में सरना धर्म कोड की जागरूकता
सोशल मीडिया, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म्स पर सरना कोड को लेकर आवाज़ें तेज़ हो रही हैं।
• युवा आदिवासी नेता और डिजिटल एक्टिविस्ट इस मुद्दे को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं।
• कई ऑनलाइन कैंपेन चलाए गए जैसे #SarnaCodeNow, #RecognizeSarnaReligion
• इससे यह मुद्दा केवल झारखंड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया है।
चुनौतियां और विरोध के स्वर
सरना धर्म कोड को लेकर कई राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियां भी हैं:
• कुछ संगठन इसे समाज को बांटने वाला कदम मानते हैं।
• वहीं कुछ दलों को डर है कि इससे उनके परंपरागत वोट बैंक खिसक सकते हैं।
• केंद्र सरकार अब तक इस कोड को मान्यता देने के पक्ष में स्पष्ट नहीं है, जिससे आदिवासी समुदाय में बेहद खीझ है।
सरना धर्मः पहचान की लड़ाई का प्रतीक
सरना धर्म कोड झारखंड के आदिवासियों की आत्म-परिभाषा और धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। यह सिर्फ एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि संविधानिक अधिकार, संस्कृति की सुरक्षा और राजनीतिक भागीदारी का भी सवाल है। आने वाले समय में यह मुद्दा झारखंड की राजनीति, सामाजिक समरसता और आदिवासी अधिकारों की दिशा तय कर सकता है।