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मेनहर्ट घोटाला में सरयू राय ने कराई प्राथमिकी, जानें विधायक ने क्या-क्या लगाए आरोप

by Rakesh Pandey
Saryu Rai Filed FIR Mainhart scam
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रांची : Saryu Rai Filed FIR Mainhart scam : झारखंड की राजधानी में सीवरेज-ड्रेनेज व्यवस्था के लिए मेनहर्ट नामक कंपनी को नियुक्त किया गया था। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने पूरी नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) जांच के उपरांत सरकार द्वारा कार्रवाई नहीं करने पर विधायक सरयू राय द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका संख्या- W.P.(C.r.) No. 376/2022 को उच्च न्यायालय ने खारिज करते हुए याचिकाकर्ता सरयू राय को निर्देश दिया कि वह किसी पुलिस थाना में प्राथमिकी दायर करे अथवा किसी सक्षम न्यायालय में मुकदमा दायर करे।

झारखंड उच्च न्यायालय के इस निर्णय के अनुपालन में विधायक सरयू राय ने गुरुवार 11 जुलाई को रांची के डोरंडा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई। प्राथमिकी में विस्तारपूर्वक तथ्यों को देते हुए सरयू राय ने डोरंडा थाना प्रभारी से आग्रह किया कि झारखंड उच्च न्यायालय के आदेशानुसार इसकी जांच शीघ्र की जाए और मेनहर्ट घोटाला के दोषियों के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की जाए।

Saryu Rai Filed FIR Mainhart scam : प्राथमिकी का मूल प्रारूप

1. रांची शहर में सीवरेज-ड्रेनेज निर्मित करने के लिए परामर्शी चयन हेतु निविदा अनावश्यक रूप से विश्व बैंक की QBS (क्वालिटी बेस्ड सिस्टम) पर आमंत्रित की गई। ऐसा एक षडयंत्र के तहत हुआ। कारण कि सीवरेज-ड्रेनेज का निर्माण अत्यंत विशिष्ट श्रेणी की योजना नहीं है। इस सिस्टम में वित्तीय दर में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है। केवल उसी निविदादाता का वित्तीय लिफाफा खोला जाता है जो तकनीकी दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट पाया जाता है।

2. निविदा मूल्यांकन के दौरान पाया गया कि कोई भी निविदादाता, निविदा की शर्त के अनुसार योग्य नहीं है। मूल्यांकन समिति और नगर विकास विभाग के सचिव ने 12 अगस्त 2005 को विभागीय मंत्री के समक्ष प्रस्ताव दिया कि निविदा को रद्द कर नई निविदा QCBS (क्वालिटी एण्ड कॉस्ट बेस्ड सिस्टम) पर निकाली जाए। विभागीय मंत्री ने यह प्रस्ताव खारिज कर दिया और आदेश दिया कि 17 अगस्त 2005 को पूर्वाह्न 10 बजे मेरे कार्यालय कक्ष में बैठक कर इसी निविदा के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाए। मंत्री का यह आदेश अनुचित, नियम विरूद्ध था और षडयंत्र के तहत दिया गया था।

3. विभागीय मंत्री के कार्यालय कक्ष में हुई बैठक में उन्होंने निर्देश दिया कि आज ही 4.30 बजे अपराह्न इसी कक्ष में बैठक बुलाकर निविदा के अग्रेतर मूल्यांकन के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। विभागीय मंत्री द्वारा निविदा मूल्यांकन समिति को दिया गया यह आदेश अनावश्यक था और निर्णय को प्रभावित करने के लिए अनुचित हस्तक्षेप था, जो षडयंत्र का हिस्सा था।

4. उसी दिन अपराह्न 4.30 बजे हुई बैठक में निर्णय हुआ कि निविदा शर्त में परिवर्तन किया जाय। निविदा खुलने और मूल्यांकन हो जाने के बाद निविदा शर्त में परिवर्तन केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देश के विरूद्ध और भ्रष्ट आचरण का द्योतक माना जाता है। विभागीय मंत्री ने अपने पद का अनुचित दुरूपयोग किया। ऐसा उन्होंने एक षडयंत्र के तहत मेनहर्ट को नियुक्त करने के लिए किया।

5. परिवर्तित शर्तों पर निविदा का मूल्यांकन आरंभ हुआ तो निविदा में अंकित योग्यता की शर्त पर मेनहर्ट अयोग्य हो गया। निविदा शर्त के मुताबिक वही निविदादाता योग्य माना जाएगा, जिसके विगत तीन वर्षों के वार्षिक टर्नओवर का औसत 40 करोड़ रुपये से अधिक होगा। मेनहर्ट ने केवल दो वर्ष का ही वार्षिक टर्नओवर निविदा के साथ दिया था। इसके केवल दो वर्षों का ही औसत निकालकर इसे योग्य घोषित कर दिया गया। यह घोर पक्षपात और भ्रष्टाचार था। ऐसा निर्णय लेने के लिए मंत्री के दबाव पर मूल्यांकन समिति को मजबूर किया गया। इसके लिए मूल्यांकन समिति के सदस्य दोषी हैं।

6. निविदा में शर्त थी कि जो निविदादाता योग्यता के शर्त पर सफल नहीं होगा, वह प्रतिस्पर्धा से बाहर माना जाएगा और उसका तकनीकी लिफाफा नहीं खोला जाएगा। परन्तु अयोग्य होने के बाद भी मेनहर्ट का तकनीकी लिफाफा खोला गया और मूल्यांकन में उसे तकनीकी पैमाना पर सर्वोत्कृष्ट घोषित कर दिया गया। निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग के जाँच प्रतिवेदन में यह सिद्ध हो गया है कि तकनीकी मूल्यांकन में किस भांति मेनहर्ट के पक्ष में पक्षपात किया गया और निविदा की तकनीकी शर्तों के साथ फर्जीवाड़ा किया गया।

7. तकनीकी रूप से सर्वोत्कृष्ट घोषित हो जाने के बाद केवल मेनहर्ट का ही वित्तीय लिफाफा खुला। निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग ने अपनी जाँच में साबित कर दिया है कि किस भांति मेनहर्ट का चयन अधिक दर पर अनुचित तरीके से किया गया।

8. मेनहर्ट की नियुक्ति में अनियमितता का मामला झारखंड विधानसभा में उठा। इसे लेकर तीन दिन तक (7 मार्च 2006 से 9 मार्च 2006 तक) विधानसभा बाधित रही। विधानसभा में विभागीय मंत्री ने मिथ्या भाषण किया और सदन को गुमराह किया। उन्होंने सदन के सामने अपने भाषण में कहा कि निविदा दो लिफाफों में आमंत्रित की गई थी। एक लिफाफा तकनीकी क्षमता का और दूसरा लिफाफा वित्तीय दर का था। परंतु निविदा प्रपत्र के मुताबिक निविदा तीन लिफाफों में आमंत्रित की गई थी। तकनीकी और वित्तीय के अलावा एक अन्य लिफाफा निविदादाताओं की योग्यता का भी आमंत्रित किया गया था। विभागीय मंत्री ने एक षडयंत्र के तहत विधानसभा को गुमराह किया। कारण कि उन्हें मालूम था कि योग्यता के पैमाने पर मेनहर्ट अयोग्य था।

9. विधानसभा अध्यक्ष ने मेनहर्ट नियुक्ति प्रकरण की जांच के लिए विधानसभा की विशेष समिति गठित कर दी। इस समिति के समक्ष नगर विकास विभाग ने प्रासंगिक दस्तावेज नहीं रखा। नतीजतन समिति ने एक स्तरहीन प्रतिवेदन देकर कतिपय तकनीकी बिंदुओं की जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई करने की अनुशंसा देकर अपना पिंड छुड़ा लिया।

10. विधानसभा की विशेष जांच समिति की अनुशंसा में अंकित अस्पष्ट तकनीकी बिंदुओं की जांच के लिए नगर विकास विभाग के ही एक अन्य अंग ‘आर.आर.डी.ए.’ के मुख्य अभियंता के संयोजकत्व में एक तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय तकनीकी समिति नगर विकास विभाग ने गठित कर दी। एक षडयंत्र के तहत इस समिति ने मेनहर्ट की नियुक्ति को सही ठहरा दिया। तकनीकी परीक्षण कोषांग की जांच में इस षडयंत्र का पर्दाफाश हो गया।

11. इसके उपरांत विधानसभा की कार्यान्वयन समिति ने मामले की गहन जांच की और पाया कि मेनहर्ट की नियुक्ति अवैध है। समिति ने मेनहर्ट को दिए गए कार्यादेश को रद्द करने की अनुशंसा की। विभागीय मंत्री ने कार्यान्वयन समिति की जांच को प्रभावित और बाधित करने के लिए विधानसभा के अध्यक्ष को दो पत्र लिखा। एक षडयंत्र के तहत विभागीय मंत्री ने विधानसभा की समिति के निर्णय को प्रभावित करने का प्रयास किया।

12. कार्यान्वयन समिति की अनुशंसाओं की जांच के लिए तत्कालीन झारखंड सरकार ने 5 अभियंता प्रमुखों की एक जांच समिति गठित की। समिति के चार सदस्यों ने एक साथ और पांचवें ने अलग जांच प्रतिवेदन दिया। सभी ने माना कि निविदा की शर्तों के तकनीकी आधार पर मेनहर्ट अयोग्य था। एक ने तो यहां तक कहा कि निविदा प्रकाशन से निविदा निष्पादन तक की प्रक्रिया में त्रुटि हुई है।

13. 2009 में झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा तो निगरानी विभाग में इस संबंध में दाखिल एक परिवाद पत्र की जांच के लिए राज्यपाल के सलाहकार ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त, राजबाला वर्मा को आदेश दिया। इसी परिवाद पत्र के आधार पर जांच की कार्रवाई करने के लिए निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आरक्षी निरीक्षक, एम.वी. राव ने क्रमशः पांच पत्र लिखकर निगरानी आयुक्त, राजबाला वर्मा से अनुरोध किया कि परिवाद पत्र की जांच करने की अनुमति एवं मार्गदर्शन दिया जाय। परंतु निगरानी ब्यूरो को जांच के लिए अनुमति नहीं मिली।
14. निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो की जगह निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग को जांच का आदेश दिया। कोषांग ने गहन जांच की। मेनहर्ट की नियुक्ति में हर स्तर पर पक्षपात साबित कर दिया और कहा कि मेनहर्ट अयोग्य था।

15. निगरानी आयुक्त वर्मा ने तकनीकी परीक्षण कोषांग का जांच प्रतिवेदन महीनों दबाए रखा। बाद में उन्होंने इसे निगरानी ब्यूरो के समक्ष कार्रवाई के लिए भेजने के लिए नगर विकास विभाग को भेज दिया। राजबाला वर्मा ने मेनहर्ट नियुक्त करने के षडयंत्र में सक्रिय भूमिका निभाई और एक लोक सेवक के आचरण के विरूद्ध काम किया।

16. इस बीच मामला झारखंड उच्च न्यायालय में गया। न्यायालय के आदेश के अनुसार, स्पष्ट है कि विभागीय मंत्री, निगरानी आयुक्त, राजबाला वर्मा और नगर विकास विभाग द्वारा गठित मूल्यांकन समिति के सदस्यों तथा विधानसभा की विशेष जांच समिति की अनुशंसा के आलोक में गठित उच्चस्तरीय तकनीकी समिति के सदस्य ने मेनहर्ट को अनियमित, अनुचित और अवैध रूप से नियुक्त करने का षडयंत्र किया। राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो को जांच नहीं करने दिया और तकनीकी परीक्षण कोषांग की जांच के आधार पर कार्रवाई नहीं होने दी।

17. कार्यान्वयन समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि कतिपय ऐसे बिंदु है, जिनकी जांच समिति की परिधि से बाहर है। इसकी जांच किसी सक्षम प्राधिकार से कराई जाए।

उल्लेखनीय है कि मेनहर्ट ने निविदा के साथ जो अनुभव प्रमाण पत्र संलग्न किया था, वह गलत था। अनुभव प्रमाण पत्र ‘बिंटान रिसोर्ट’ के जिस लेटर पैड पर 2005 में दिया गया था, उसके बारे में बिंटान रिसोर्ट मैनेजमेंट का कहना है कि उन्होंने इस लेटरपैड का उपयोग वर्ष 2000 से बंद कर दिया है और जारी करने वाले के रूप में जिस व्यक्ति का नाम और हस्ताक्षर है, वह व्यक्ति कभी भी बिंटान रिसोर्ट मैनेजमेंट का अधिकारी नहीं रहा है।

इससे स्पष्ट है कि जिस अनुभव प्रमाणपत्र का उपयोग मेनहर्ट की उपयोगिता निर्धारित करने में हुआ, वह पत्र फर्जी है। चूंकि बिंटान रिसोर्ट विदेश में है और मेनहर्ट का मुख्यालय भी सिंगापुर में है, इसलिए इसकी जांच करने में कार्यान्वयन समिति सक्षम नहीं थी। इसलिए समिति ने इसकी जांच सक्षम संस्था से कराने के लिए कहा।

18. अवैध रूप से नियुक्त किए जाने के बाद कार्य करने के लिए झारखंड सरकार, रांची नगर निगम और मेनहर्ट के बीच जो समझौता हुआ, वह समझौता भी त्रुटिपूर्ण था, जिसके कारण मेनहर्ट पूरा भुगतान लेकर और काम अधूरा छोड़ कर निकल गया। अब वर्तमान राज्य सरकार को रांची के सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण के लिए नए सिरे से परामर्शी बहाल करने हेतु नई निविदा निकालनी पड़ी है। ऐसा करना मेनहर्ट को षडयंत्र के तहत अनियमित रूप से बहाल करने वालों की बदनीयत और भ्रष्ट आचरण का प्रतिफल है। जांच से यह भी पता चलेगा कि इसके कारण सरकारी खजाना पर कितना बोझ पड़ा है, राजकोष से कितना निष्फल व्यय हुआ है और परियोजना की लागत कितनी बढ़ी है।

19. विधानसभा में मेरे प्रश्न के उत्तर में 23 फरवरी 2020 को सरकार ने स्वीकार किया कि इस बारे में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा पीई दर्ज की गई है। प्राथमिकी दायर करने के उपरांत अनुसंधान के दौरान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से पीई जांच प्रतिवेदन मंगाकर दोषियों को चिह्नित किया जा सकता है और इनके विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की जा सकती है।

Saryu Rai Filed FIR Mainhart scam : दोषियों को दंड दिलाने का अनुरोध

अनुरोध है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में आपके समक्ष दायर की जा रही प्राथमिकी की गहन जांच करें, ताकि झारखंड उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन हो सके और दोषी षडयंत्रकारियों को बेनकाब किया जा सके तथा अपने निहित स्वार्थी आचरण से राज्यहित और जनहित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वालों को दंडित किया जा सके। प्राथमिकी प्रपत्र की उपर्युक्त कंडिकाओं में जिन दस्तावेजों का उल्लेख, उन्हें अनुसंधान के दौरान मैं अनुसंधान पदाधिकारियों को सौंपने के लिए वचनबद्ध हूं।

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