नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के न्यायिक अधिकारियों को महत्वपूर्ण नसीहतें दी हैं। गुरुवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों को अपने जीवन में संन्यासी जैसा आचरण अपनाना चाहिए और घोड़े की तरह काम करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, और किसी भी मामले में अदालत के फैसलों पर सार्वजनिक राय व्यक्त करने से बचना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी से संबंधित मामले में आई। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने यह आदेश दिया। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका को किसी भी दिखावेपन से मुक्त होना चाहिए, और न्यायिक अधिकारियों को इस तरह के मंचों से दूर रहना चाहिए, जैसे कि फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स।
सुप्रीम कोर्ट की नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “न्यायिक अधिकारियों को फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स से पूरी तरह दूर रहना चाहिए।” बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई न्यायिक अधिकारी फैसलों पर राय प्रकट करता है, तो भविष्य में उस निर्णय का संदर्भ देने में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि पहले ही जज ने अपनी राय जाहिर कर दी होती है। कोर्ट ने आगे कहा, “यह एक खुला मंच है और आप एक संन्यासी की तरह जीवन जीएं, घोड़े की तरह काम करें।”
न्यायपालिका में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जजों को कई तरह के त्याग करने पड़ते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को अपनी व्यक्तिगत राय को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके निर्णयों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की बर्खास्तगी का मामला
यह टिप्पणी तब आई जब सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर, 2023 को राज्य सरकार द्वारा जजों की बर्खास्तगी के मामले का स्वतः संज्ञान लिया था, जिनके प्रदर्शन को असंतोषजनक बताया गया था।
हालांकि, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की पूर्ण अदालत ने 1 अगस्त, 2023 को अपने पहले के फैसले पर पुनर्विचार किया। कोर्ट ने चार महिला जजों को शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया, जबकि अन्य दो जजों को बहाल नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में उन जजों के मामलों पर विचार कर रहा था, जो 2017 और 2018 में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में शामिल हुए थे।
न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह स्पष्ट करती है कि न्यायपालिका को राजनीति, मीडिया और सोशल मीडिया के प्रभाव से मुक्त रहकर अपने फैसले लेने चाहिए। जजों को व्यक्तिगत राय रखने और उसे सार्वजनिक करने से बचना चाहिए, ताकि उनके निर्णय निष्पक्ष और कानूनी दृष्टि से सटीक बने रहें।
सुप्रीम कोर्ट का यह संदेश भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए अहम है। न्यायिक अधिकारियों को सार्वजनिक जीवन और सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने की सलाह, न्यायालयों की निष्पक्षता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम है।
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