चाईबासा: पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय स्थित बाल सुधार गृह (सम्प्रेषण गृह) से मंगलवार शाम 21 बाल बंदी फरार हो गए थे। इनमें से सात बाल बंदी अब तक वापस लौट आए हैं, जबकि 14 अभी भी फरार हैं। प्रशासन उनकी तलाश में लगातार छापेमारी कर रहा है। फरार हुए बाल बंदियों में से आठ गंभीर अपराधों, जैसे दुष्कर्म के आरोप में बंद थे, जबकि कुछ पर रेलवे एक्ट के तहत केस चल रहा है।
प्रशासन की सख्ती और निरीक्षण

इस घटना को गंभीरता से लेते हुए रांची से महिला बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग की निदेशक समीरा एस और जिला समाज कल्याण कार्यालय के अपर सचिव अभयनंदन अंबष्ठ ने सम्प्रेषण गृह का दौरा किया। उन्होंने जिले के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मामले की जांच की और उपायुक्त को इस पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। उपायुक्त कुलदीप चौधरी और पुलिस अधीक्षक ने भी मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। उपायुक्त ने कहा कि जांच में जो भी तथ्य सामने आएंगे, उनके आधार पर उचित कदम उठाए जाएंगे।
बोन डेंसिटी टेस्ट की योजना
बाल सुधार गृह की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि यहां कई बाल बंदी इतने ताकतवर और बड़े दिखते हैं कि उनकी सही उम्र का पता लगाना मुश्किल हो रहा है। सुरक्षा कर्मचारियों के लिए इन्हें संभालना कठिन हो रहा है। जिला प्रशासन अब सभी बाल बंदियों का बोन डेंसिटी टेस्ट कराने पर विचार कर रहा है, ताकि उनकी वास्तविक उम्र की पुष्टि की जा सके। प्रशासन का मानना है कि प्रमाणपत्रों या शारीरिक संरचना के आधार पर सही उम्र का पता लगाना संभव नहीं है, इसलिए यह वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाएगा।
सम्प्रेषण गृह की सुरक्षा और व्यवस्थाएं
चाईबासा बाल सुधार गृह में कुल 85 बाल बंदी हैं, जिनमें से 61 चाईबासा और 23 सरायकेला जिले के हैं। यहां तीन अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं।एक वार्ड में 33,दूसरे में 25,और तीसरे में 26 बाल बंदी रहते हैं।बाहरी सुरक्षा के लिए दो-दो घंटे की शिफ्ट में पांच पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं, जबकि अंदर की सुरक्षा होमगार्ड के जवानों के जिम्मे है। इसके बावजूद मंगलवार शाम छह बजे सभी 85 बाल बंदियों ने हंगामा किया, तोड़फोड़ की और गेट तोड़कर बाहर आ गए। इनमें से 21 फरार हो गए।
बाल बंदियों में हताशा और कुंठा
निरीक्षण के दौरान बाल बंदियों ने अपनी समस्याओं को अधिकारियों के सामने रखा। उन्होंने बताया कि वे कई वर्षों से यहां बंद हैं, लेकिन उनकी रिहाई की प्रक्रिया रुकी हुई है। कुछ बंदी ढाई साल से,तो कुछ चार साल से यहाँ कैद हैं। रिहाई न होने की वजह से वे हताश और कुंठित महसूस करड रहे हैं। इसी वजह से मारपीट और हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। अधिकारियों ने इस समस्या पर विचार करने और उचित समाधान निकालने का आश्वासन दिया है। बाल सुधार गृह से बंदियों के फरार होने की यह घटना सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है। प्रशासन अब सुरक्षा बढ़ाने और बंदियों की वास्तविक उम्र का पता लगाने के लिए बोन डेंसिटी टेस्ट कराने की योजना बना रहा है। साथ ही, बाल बंदियों की रिहाई प्रक्रिया को तेज करने के उपायों पर भी विचार किया जा रहा है।