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शहरनामा: दावेदारों काटने लगा कीड़ा

by The Photon News Desk
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लोकसभा चुनाव का बिगुल अभी बजा है, लेकिन दावेदारों को बहुत पहले से कीड़ा काट रहा र्ह। जैसे-जैसे बिगुल की तारीख नजदीक आती गई, खुजली तेज होने लगी। एक दल तो इसमें बहुत एडवांस निकला। उसने काफी पहले ही स्थिति स्पष्ट कर दी कि वह तो पावर स्टेशन पर ही भरोसा करता है।

इसके साथ ही कई दावेदारों की खुजली शांत हो गई, जबकि एकाध के शरीर में लग रहा है कि राजनीति के कीड़ों ने झुंड बनाकर हमला बोल दिया है। बताते हैं कि इसमें एक-दो दलबदलू टाइप के प्राणी कुलबुलाने लगे हैं। उन्हें लग रहा है कि कैसे भी हो, यह मौका छूटना नहीं चाहिए। उनके लिए करो या मरो की नौबत आ गई है। पांच साल बाद क्या होगा, कौन जानता है। उनके लिए सब्र का फल बिकना बंद हो गया है।

शुरू हो गई पोस्टरबाजी

चुनाव के साथ ही शहर में पोस्टरबाजी शुरू हो गई है। अब आप यह मत पूछिएगा कि यह पोस्टर कहां लगा था, हमने तो नहीं देखा। तो बता देते हैं, जनाब कि यह पोस्टर कहां लगा, इसके पीछे माथा खपाने की जरूरत नहीं है। आपको देखना ही है तो सोशल मीडिया खंगाल लीजिए, जहां यह पोस्टर वायरल हो रहा है। मजे की बात है कि एक उम्मीदवार, नहीं उसके दल के खिलाफ उसकी ही जाति-समुदाय के लोग पीछे पड़ गए हैं, लेकिन जिसने यह पोस्टर बनाया, उसने नकल में अकल लगाना जरूरी नहीं समझा। उसने टाइटल को ही जाति समझकर विरोध कर दिया है, जिससे उस जाति के लोग बौखलाए हुए हैं। अब वे उस व्यक्ति का पता लगा रहे हैं, जिसने उनकी जाति के उम्मीदवार और उसके दल को ललकारा है।

एक ने पोस्टर फाड़ा, तो दूसरे ने शिला तोड़ा

अभी विधानसभा चुनाव दूर है, लेकिन शहर का राजनीतिक माहौल ऐसा बन गया है, जैसे लोकसभा में ही विधानसभा का मैच भी हो जाएगा। यदि ऐसा नहीं होता तो पोस्टर फाड़ा-फाड़ी और शिला तोड़ राजनीति की शुरुआत नहीं हुई होती। पिछले दिनों एक नवजात दल के कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह पोस्टर-बैनर लगाए थे।

कार्यक्रम के अगले दिन देखा कि उनका बड़ा सा पोस्टर किसी ने इस तरह फाड़ दिया था कि बस कोने से पता चल रहा था कि यह उन्हीं के दल का है। उन्होंने जी भर कर भड़ास निकाली, तो कागजी शेर की तरह खूब गरजे भी। अगले दिन जिस दल पर आशंका थी, उनका शिला ही तोड़ कर गायब कर दिया गया। इसमें खास बात यह रही कि पूर्व की भांति थाने में केस-मुकदमा नहीं हुआ।

तीर-धनुष भी कर सकता खेला

राजनीति में खेला होबे़… का नारा भले ही ममता दीदी ने दिया हो, लेकिन बंगाल का यह नारा उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र से लेकर पूरे देश में वायरल हो चुका है। अपनी लौहनगरी तो बंगाल के पड़ोस में है, इसलिए यहां के लिए यह नारा नया नहीं है। बताते हैं कि यहां अभी एक ही दल ने उम्मीदवार घोषित किया है, बाकी दलों ने चुप्पी साध रखी है। पहले तो यही डिसाइड नहीं हुआ है कि फूल वाली पार्टी से कौन टकराएगा।

मन ही मन तीर-धनुष वाली पार्टी ने यहां से अपना खिलाड़ी उतारने का न केवल फैसला कर लिया है, बल्कि फूल से ही एक पंखुड़ी चुरा कर खेला करने की तैयारी भी कर ली है। राजनीति के धुरंधरों को अब उस घड़ी की प्रतीक्षा है, जब उम्मीदवार के नाम की घोषणा होगी।

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वीरेंद्र ओझा

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