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शहरनामा : यदा यदा हि धर्मस्य

by The Photon News Desk
Shaharnama
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Shaharnama : यह कहने की आवश्यकता नहीं कि महाभारत की यह उक्ति न केवल आप पूरा जानते होंगे, बल्कि इसका भावार्थ भी समझते होंगे। यह श्लोक निराशा के भाव का नाश करता है। कुछ इसी तरह की परिस्थिति इन दिनों राजनीति में भी उत्पन्न हुई है। पृष्ठभूमि लोहे के शहर की नहीं, कोयला नगरी की है, लेकिन दोनों का कनेक्शन कुछ इस तरह से जुड़ गया है कि यह पूरे सूबे के लिए प्रासंगिक बन गया है।

बात कुछ इस तरह की है कि कोयले की परत पर जब अलकतरा का कालापन चढ़ गया तो वहां के निवासियों में ग्लानि का भाव भर गया है। हालांकि इसके कुछ अन्य कारण भी हैं, लेकिन चतुर चाचा ने रार ठान लिया है कि वे कालिख पर अलकतरा पुतने नहीं देंगे। चाचा के पिछले रिकार्ड को देखते हुए वहां आशा का संचार हो गया है।

पानीदार भैया की भी सुगबुगाहट

लौहनगरी की धरती पर इस बार इंडिया टीम से बैटिंग कौन करेगा, यह संकट बना हुआ है। सबके मन में तरह-तरह के सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं। पहले तो यही तय नहीं हुआ है कि पंजे को तीर-धनुष छेदेगा या तीर-धनुष को पंजा अपनी मुट्ठी में बंद करेगा। बहरहाल, दोनों खेमे के दिग्गजों में मन ही मन बड़े-बड़े लड्डू फूट रहे हैं कि पता नहीं, किसकी लॉटरी लग जाए। वैसे इस बात की पूरी चर्चा है कि यहां से तीरों की ही बौछार होगी।

कहा तो यह भी जा रहा है कि तीर इस बार फूल को ही बेधने जा रहा है। इसमें पहले एक सोशल मीडिया के धुरंधर का नाम जोर-शोर से उछला था, लेकिन इसी बीच एक पानीदार भैया को लेकर भी सुगबुगाहट चल रही है। बेचारे को लंबे संघर्ष के बावजूद खेतीबाड़ी में लगा दिया गया। सबको पता है कि गर्मी आते ही उनका टैंकर कैसे दौड़ता है।

सरदारजी फूल थामने को आतुर

अपने शहर में वैसे तो कई सरदारजी हैं, लेकिन उनमें से एक फूल थामने को इतने आतुर हैं कि यहां से मीलों दूर दिल वालों के शहर का चक्कर लगा रहे हैं। इतना ही नहीं, शहनाई जैसी दिखने वाली एक छोटे से वाद्य नामधारी का गुणगान भी कर आए। वे लगभग डेढ़ दशक से लौहनगरी की चुनावी वैतरणी में डुबकी लगाने का मन बनाए हुए हैं, लेकिन कमबख्त हर बार कुछ ऐसा होता है कि होनी टल जाती है।

इस बार उन्होंने न केवल सभी कील-कांटे दुरुस्त कर लिए है, बल्कि ईश्वर की कृपा से बड़ा कांटा अपने आप निकल गया है। इसके बावजूद कुंडली में होनी प्रकट नहीं हो रही है। पता नहीं, अब कौन सा शनि या राहु कुंडली में बैठा है। जाड़े में इनकी सेवा तो पूरा जिला लेता है, लेकिन मौके पर भूल जाता है।

सबको छका रहा एक तेंदुआ

पहले शहर के पड़ोस में, तो अब यहां एक तेंदुआ सबको छका रहा है। पंद्रह दिन बाद, जब सभी उसकी मौत या गायब हो जाने की आस लगाए बैठे थे, एकबारगी प्रकट होकर सबको चौंका दिया। इस बार शहर के एक छोर पर खरकई नदी से सटे पार्क में तेंदुआ को देखे जाने की बात कही जा रही है।

मजे की बात है कि इसे दिन के उजाले में सिर्फ कैमरे ने ही देखा है, किसी विश्वसनीय ने साक्षात दर्शन नहीं किया है। इस बार भी एक वीडियो से हलचल मच गई है, तो पिछली बार भी वीडियो ने ही हड़कंप मचाया था। मजे की बात है कि खूंखार नव्यजीव को पकड़ने के लिए निहत्थों की टीम बनाई गई थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। एक अदद पार्क को घेरने और तेंदुआ को खाली हाथ दबोचने में सबके पसीने छूट रहे हैं।

वीरेंद्र ओझा

वीरेंद्र ओझा

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