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कौन थीं शिवानी, जानिए 142वें सृजन संवाद में क्यों हुआ शिवानी शताब्दी का आयोजन

by Neha Verma
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जमशेदपुर : ‘सृजन संवाद’ साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ने 142वीं संगोष्ठी का आयोजन प्रसिद्ध लेखिका शिवानी के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव किया। शुक्रवार शाम 6 बजे से शिवानी समारोह पूरे पौने दो घंटे चला। इसमें शिवानी की कहानियों, उपन्यासों, दूरदर्शन धारावाहिक की चर्चा हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजय शर्मा तथा डॉ. मंजुला मुरारी ने किया। स्ट्रीमयार्ड का संचालन एवं स्वागत डॉ. विजय शर्मा ने किया।

डॉ. विजय शर्मा ने विषय परिचय देते हुए वक्ताओं तथा फ़ेसबुक लाइव श्रोताओं-दर्शकों का स्वागत किया। अब तक सृजन संवाद ने कई साहित्यकारों पर कार्यक्रम किए हैं। 17 अक्टूबर 1923 को जन्मीं शिवानी के लेखन से कई पीढ़ियाँ प्रभावित रही हैं। आज की तरह कुछ दशक पहले संचार के साधन सुलभ नहीं थे, उस समय शिवानी ने पाठकों को कुमाऊं की सभ्यता-संस्कृति से परिचय कराया। उनके इलाके की स्त्रियाँ बहुत सुंदर होती हैं, अत: कुमाऊँ से आने वाली सुंदर व्यक्तित्व की मालकिन शिवानी ने खूबसूरत नायिकाएँ रचीं। वे उच्च वर्ग के रीति-रिवाजों, कठिनाइयों, संघर्षों, कमियों, खामियों, अंधविश्वासों, कुरीतियों को अपनी कहानियों-उपन्यासों में व्यक्त करती हैं। संभ्रांत परिवार से आने वाली शिवानी की 12 साल की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित हुई। उन्होंने कहानियों के अलावा संस्मरण, निबंध, यात्रा वृतांत, कॉलम आदि लिखे। उन पर उनकी बेटी इरा पाण्डेय ने ‘दीदी माई मदर्स वॉयज’ लिखा। बच्चे उन्हें मित्रवत व्यवहार के कारण दीदी बुलाते थे। ‘कृष्णकली’ – जिस पर अमोल पालेकर ने दूरदर्शन केलिए इसी नाम से सीरियल बनाया – , ‘सुरंगमा’, ‘श्मशान चंपा’, ‘रति विलाप’, विषकन्या’ 40 उपन्यास लिखे, जिन्हें पाठक आज भी याद करते हैं।

दिल्ली से पहली वक्ता चित्रकार-मूर्तिकार शाइनी शर्मा ने ‘शिवानी की रचनाएँ सौंदर्य और सुरुचि का झरोखा’ पर अपनी बात रखते हुए कहा, बचपन से उन्होंने शिवानी को पढ़ कर जीवन में रंग-बोध एवं कुलीनता की परिभाषा सीखी। बेंगलुरु के मूर्तिकार-कवि परमानंद रमण ने शिवानी की कथा शैली को उनकी कुछ कहानियों के माध्यम से बताया। उनके अनुसार शिवानी के कार्य में ‘समर्थवान की असमर्थता’ रेखांकित की जा सकती है। जमशेदपुर से कवि-कहानीकार-गजलकार अजय महताब ने शिवानी की ‘अपराजिता’ एवं ‘सती’ कहानी के माध्यम उनके लेखन की मजबूती को दर्शाया। बहुभाषीय दीपा मिश्रा ने भुवनेश्वर से कहा, 21 मार्च 2003 को शिवानी के गुजरने पर चार पीढ़ियों से शिवानी के साहित्य का रसास्वादन करने वाली, वे सब भी बहुत रोई थीं।

पाँचवीं वक्ता सेवानिवृत डॉ. मंजुला मुरारी ने लखनऊ से शिवानी की किताब ‘आमादेर शांतिनिकेतन’ का परिचय दिया, उसके कुछ अंशों का पाठ किया और उसमें संकलित एक गीत की रिकॉर्डिंग सुनाई। और जब संग में वे सुमधुर स्वर में गाने लगीं तो गोष्ठी का वातावरण और सुंदर हो गया।

‘स्वदेश दर्शन’ जमशेदपुर, के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर अंकित राणा ने वक्ताओं की प्रमुख बातों को रेखांकित करते हुए वक्ताओं, पोस्टर निर्माता, मीडिया, स्ट्रीमयार्ड के लिंक बनाने वाले का धन्यवाद ज्ञापन किया। वक्ताओं से आग्रह किया गया, वे अपनी टिप्पणी-विचारों को लिपिबद्ध करें, ताकि ‘सृजन संवाद’ पटल पर शिवानी लेखों की शृंखला चले। अगली गोष्ठी इस वर्ष की नोबेल साहित्य विजेता हान कान्ग पर होनी तय हुई है।

142वें सृजन संवाद कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव माध्यम से देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, दिल्ली से रक्षा गीता, जमशेदपुर से डॉ. मीनू रावत, डॉ. क्षमा त्रिपाठी, आभा विश्वकर्मा, अर्चना अनुपम, ऋचा द्विवेदी, श्रवण कुमार, वीणा कुमारी, रांची से ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, बेंगलुरु से पत्रकार अनघा मारीषा, दिल्ली से आशीष कुमार सिंह, वी4यू की माधवी श्रीवास्तव, गोमिया से प्रमोद कुमार बर्णवाल आदि जुड़े। इनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ। इस कार्यक्रम से सृजन संवाद में कुछ नए सदस्य जुड़े।

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