लखनऊः समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव के एक समर्थक की हल्की-फुल्की सोशल मीडिया टिप्पणी अब बड़ा मुद्दा बन चुकी है। इस समर्थक ने सोशल मीडिया पर एक पंक्ति लिखी- “अखिलेश भैया का जो सामना करेगा, उसे रेल दिया जाएगा”।
हालांकि यह टिप्पणी मज़ाकिया लहजे में की गई लगती है, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसे गंभीरता से लिया और युवक को पूछताछ के लिए बुलाया। हैरानी की बात यह रही कि पूछताछ के दौरान पुलिस पर युवक से ₹20,000 वसूलने का आरोप भी लगा है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचा युवक, अखिलेश यादव की मुस्कान बनी सुर्खी
इस मामले की गूंज तब और तेज़ हो गई जब पीड़ित युवक अपनी शिकायत लेकर अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही पहुंच गया। युवक ने पूरे घटनाक्रम को सार्वजनिक करते हुए बताया कि सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर पुलिस ने न सिर्फ पूछताछ की, बल्कि 20,000 रुपये की कथित वसूली भी की।
युवक की बात सुनकर अखिलेश यादव खुद को हंसने से रोक नहीं सके। उन्होंने मुस्कुराते हुए युवक की बात सुनी, लेकिन उनके चेहरे पर हल्की-सी चिंता भी दिखाई दी।
सवालों के घेरे में पुलिस कार्रवाई, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बहस
इस घटना ने एक बार फिर लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस छेड़ दी है। क्या एक मज़ाकिया पोस्ट पर इतनी सख्त कार्रवाई जायज है? क्या सोशल मीडिया पर किसी नेता के समर्थन में की गई पोस्ट भी आपराधिक श्रेणी में आ सकती है?
उत्तर प्रदेश पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर तब जब वसूली का आरोप भी जुड़ गया हो। यह घटना सिर्फ एक पोस्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक अभिव्यक्ति की सीमा, पुलिस की भूमिका और लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ से जुड़ा गंभीर मामला बन चुका है।
इस पर समाज और सरकार दोनों को विचार करना होगा कि कहीं हमारी संस्थाएं लोकतंत्र की जड़ों को ही कमजोर तो नहीं कर रही हैं?
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