Home » Srijan Samvad : तकनीक में परिवर्तन के चलते सिनेमा हो गया वैश्विक : अशोक मिश्रा

Srijan Samvad : तकनीक में परिवर्तन के चलते सिनेमा हो गया वैश्विक : अशोक मिश्रा

सृजन संवाद की 147वीं संगोष्ठी में फिल्मकार अशोक मिश्रा की यात्रा पर हुईं विस्तार से बातें

by Rakesh Pandey
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

जमशेदपुर : ‘सृजन संवाद’ साहित्य, सिनेमा एवं कला की 147वीं संगोष्ठी स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर प्रसिद्ध सिने-व्यक्तित्व अशोक मिश्रा की सिने-यात्रा पर हुई। 22 फ़रवरी की शाम 6.30 बजे से करीब डेढ़ घंटे चली इस बातचीत में प्रसिद्ध फ़िल्म ‘कटहल’ के लेखक के अलावा सिने-इतिहासकार मनमोहन चड्ढा, न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक आशीष कुमार सिंह एवं सिने-विशेषज्ञ अमरेंद्र कुमार शर्मा ने भाग लिया। परिचर्चा का संचालन डॉ. विजय शर्मा ने किया।

विभिन्न स्थानों पर नाट्य एवं पटकथा लेखन की कार्यशाला संचालित करने वाले अशोक मिश्रा ने बताया कि बचपन में पढ़ने में उनका मन बिल्कुल नहीं लगता था, जबकि उनके पिता रामस्वरूप मिश्रा, जिला शिक्षा इंस्पेक्टर थे। बाद में परिवार के सहयोग से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की तथा हिंदी एवं भाभी रंजना मिश्रा के सहयोग से संस्कृत साहित्य के प्रति उनका झुकाव हुआ। हबीब तनवीर का सानिध्य मिला और वे नाटकों से जुड़ गए। वे ‘रचना’ नाटक ग्रुप के संस्थापक हैं और उन्होंने खूब नाटक किए हैं। फ़िल्म में आने पर उन्हें श्याम बेनेगल, सईद मिर्जा जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला। काम करते हुए वे सीखते गए और अपने काम में निखार लाते गए।


आशीष कुमार सिंह ने प्रश्न से कार्यक्रम आगे बढ़ाते हुए पूछा, पिछले पांच दशक से फ़िल्म में क्या बदलाव दिखता है? उत्तर देते हुए मिश्रा ने बताया कि पिछले पचास सालों में तकनीक में परिवर्तन के चलते सिनेमा वैश्विक हो गया है, इसमें जनतांत्रिकता बढ़ी है, छोटे-छोटे स्थानों से लोग कम संसाधन में अच्छा सिनेमा बना रहे हैं। उन्होंने श्याम बेनेगल के साथ करीब तीस साल काम किया और पाया कि वे बहुत सरल एवं विद्वान व्यक्ति थे, उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर गजब का था। सईद मिर्जा से उन्होंने सीखा, यदि बात को बार-बार कहना हो, संवाद को कई बार दोहराना हो तो, फ़िल्म नहीं, उपन्यास लिखना चाहिए।


अशोक मिश्रा ने हाल में विश्वरंग संवाद पत्रिका के सिनेमा विशेषांक का संपादन किया है, उन्होंने संपादन से संबंधित अपने अनुभव साझा किए। इस अंक में सृजन संवाद के कई सदस्य शामिल हैं। अमरेंद्र कुमार शर्मा ने अकादमिक प्रश्न पूछे, जिनके उत्तर सिने-छात्रों के लिए विशेष उपयोगी रहे। मिश्रा ने स्क्रीनप्ले एवं संवाद को विस्तार से समझाया। मनमोहन चड्ढा को अशोक मिश्रा बहुत अपने लगते हैं, क्योंकि उनमें फ़िल्मी लोगों वाला दंभ नहीं है और वे हिंदी में काम करते हैं, चड्ढा जी के प्रश्न के उत्तर में अशोक जी ने कहा, निर्देशक श्याम बेनेगल फ़िल्म में रिसर्च का महत्व समझते थे और रिसर्च के लिए इंतजाम करते थे। बेनेगल ने बतौर स्क्रिप्टराइटर सदैव अशोक मिश्रा की सुविधा का ध्यान रखा, उनकी बातों को सुना और तर्कपूर्ण सुझावों को महत्व दी।


दर्शकों-श्रोताओं ने एक स्वर से माना, जहां लोग खुद को ग्लोरीफ़ाई करते हैं, अशोक मिश्रा खुद से अधिक दूसरों की बात करते हैं, उन्हें महत्व देते हैं। ‘कटहल’ फ़िल्म बतौर निर्देशक उनके बेटे यशोवर्धन मिश्रा की पहली फ़िल्म है, यह बात भी उन्होंने बस चलते-चलते बताई। दर्शकों ने ‘कटहल, ‘वेलडन अब्बा’, ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ फ़िल्मों की तारीफ़ की एवं अशोक मिश्रा की जीवन यात्रा से कई नई बातें जानीं।
आशीष कुमार सिंह ने इस महत्वपूर्ण-सार्थक कार्यक्रम का सार प्रस्तुत किया। डॉ. विजय शर्मा ने वक्ताओं, दर्शक-श्रोता, पोस्टर निर्माता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया, संचालन के लिए वैभव मणि त्रिपाठी एवं अनुराग रंजन का धन्यवाद ज्ञापन किया।

इनकी उपस्थिति रही खास

147वें सृजन संवाद कार्यक्रम में देहरादून से सिने-समीक्षक मनमोहन चड्ढा, दिल्ली से आशीष कुमार सिंह, जमशेदपुर से डॉ. मीनू रावत, डॉ. क्षमा त्रिपाठी, आभा विश्वकर्मा, अर्चना अनुपम, श्रवण कुमार, वीणा कुमारी, गीता दुबे, जोबा मुर्मू, बीनू पाण्डेय, रांची से ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, कहानीकार कमलेश, बेंगलुरु से पत्रकार अनघा मारीषा, गोरखपुर से अनुराग रंजन, गोमिया से प्रमोद कु. बर्णवाल, इलाहाबाद से सुरभि बिप्लव, बर्धमान से कल्पना पंत, अन्य स्थानों से कृष्ण कुमार मिश्र, प्रदीप मिश्र, दिलीप मिश्र, सुदीप साहू, चंदा राव आदि जुड़े। इनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ।

अशोक मिश्रा की उल्लेखनीय उपलब्धियां

डॉ. विजय शर्मा ने विषय परिचय देते हुए मंचस्थ विद्वानों तथा फ़ेसबुक लाइव के श्रोताओं-दर्शकों का स्वागत किया। अब तक सृजन संवाद ने फ़िल्म व्यक्तित्व पर कई कार्यक्रम किए हैं, जिनमें गौतम घोष, सत्या सरन, सोमा चटर्जी, मृत्युंजय श्रीवास्तव, आशुतोष पाठक, पंकज मित्रा, सुदीप सोहनी, अनिरुद्ध भट्टाचार्य जैसे सिने-विशेषज्ञों ने शिरकत की है। उन्होंने बताया कि शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने फ़िल्में ‘कटहल’ नहीं देखी हो। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से प्रशिक्षित अशोक मिश्रा उसके लेखक हैं।

पटकथा लेखक, गीतकार, अभिनेता, नाट्य निर्देशक अशोक मिश्रा ने ‘भारत एक खोज’, ‘अमरावती की कथाएं’, ‘संक्रांति, ‘मृग नयनी’, ‘सहर’, ‘इंतज़ार’ आदि धारावाहिक तथा ‘कटहल’ के अलावा ‘नसीम’, ‘समर’, ‘वेल्डन अब्बा’, ‘वेलकम टू सज्जनपुर’, ‘बवंडर’, ‘कभी पास कभी फेल’, ‘दुर्गा’, ‘गांजे की कली’ आदि फ़िल्मों का लेखन किया है। आपको ‘समर’ एवं ‘नसीम’ फ़िल्म के लिए दो बार सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का ‘नेशनल अवार्ड’ प्राप्त हुआ है। ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन के लिए ‘स्टार स्क्रीन अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है। मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग ने प्रतिष्ठित ‘राष्ट्रीय किशोर कुमार अवार्ड’ प्रदान किया है।

Read Also- Gorakhpur News: नहीं रहे भोजपुरी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार रविंद्र श्रीवास्तव ‘जुगानी भाई’, 83 की उम्र में ली अंतिम सांस

Related Articles