भुवनेश्वर : ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के भरोसेमंद सचिव और IAS वीके पांडियन ने सोमवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले लिया। वीआरएस लेने के 24 घंटे के अंदर वीके पांडियन को ओडिशा सरकार के कैबिनेट मंत्री के पद के साथ 5 टी (परिवर्तनकारी पहल) का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। वीके पांडियन को जिस पद पर नियुक्त किया गया, वह सीधे मुख्यमंत्री के अधीन आता है। मतलब ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बाद दूसरे पोजिशन पर वीके पांडियन हो गए हैं। पांडियन 2011 में मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO ) में शामिल हुए और तब से वह नवीन पटनायक के निजी सचिव रहे हैं। 2019 में पटनायक के पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने के बाद, पांडियन को सरकारी विभागों में कुछ परिवर्तनकारी पहलों को लागू करने के लिए ‘5 टी सचिव’ की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने केंद्र को अपना स्वैच्छित सेवानिवृत्ति का आवेदन भेजा था, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
मार्च से राजनीति में आने की थीं अटकलें
पांडियन के IAS छोड़ने और नवीन की पार्टी बीजू जनता दल में शामिल होने की अफवाहें तब से चल रही थीं जब उन्होंने इस साल मार्च में राज्य के विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करना शुरू किया था। उन्होंने लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए सभी 147 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया था। यह एक ऐसा कदम था जिसे व्यापक रूप से उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जनता के बीच आधार के रूप में देखा गया।
IAS से इस्तीफ़ा देकर ओडिशा की राजनीति में रखा कदम/ मुख्यमंत्री पटनायक के अधीन काम करेंगे
राज्य के सामान्य प्रशासन और लोक शिकायत विभाग ने अपने 24 अक्टूबर के आदेश में उल्लेख किया है कि पांडियन को ‘कैबिनेट मंत्री के पद’ पर 5T (परिवर्तनकारी पहल) और नवीन ओडिशा योजना का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। आदेश में कहा गया, ‘पांडियन सीधे मुख्यमंत्री पटनायक के अधीन काम करेंगे।’ कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने ओडिशा सरकार के एक संदर्भ पत्र के बाद 23 अक्टूबर को पांडियन की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को मंजूरी दे दी।
वीआरएस पर विपक्षा दलों का बयान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एसएस सलुजा ने वीआरएस लेने के पांडियन के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह पांडियन को पहले कर लेना चाहिए था। हम नहीं जानते कि वह राजनीति में आएंगे या अपने राज्य लौट जाएंगे। हालांकि यदि वह बीजद में शामिल होते हैं तो यह विपक्ष के लिए खासतौर पर कांग्रेस के लिए मददगार साबित होगा। भाजपा के मुख्य सचेतक मोहन मांझी ने कहा कि पांडियन ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तीफा दिया है। वहीं उन्होंने कहा कि अब वह अपने चेहरे पर नौकरशाह के नकाब के बिना खुलकर राजनीति कर सकेंगे। उन्हें ओडिशा की जनता स्वीकार नहीं करेगी। कई विपक्षी दलों ने पांडियन के दौरों की आलोचना की। इस राज्य सरकार पर नौकरशाही अतिक्रमण के रूप में परिभाषित किया गया। मुख्यमंत्री ने उनका बचाव करते हुए इस पहल को उनके दिमाग की उपज बताया। बीजू जनता दल ने पांडियन के कार्यक्रम को लेकर मिली जनता की प्रतिक्रिया को उम्मीदों से अधिक बेहतर बताया।
कौन हैं IAS पांडियन?
2000 बैच के आईएएस अधिकारी वीके पांडियन की जड़ें तमिलनाडु में हैं। उन्होंने एक युवा जिला कलेक्टर के रूप में अपने काम से ध्यान आकर्षित किया था। सीएम नवीन पटनायक उन्हें 2011 में मुख्यमंत्री कार्यालय लेकर आए थे। धीरे-धीरे पांडियन ने पटनायक भरोसेमंद सहयोगी और पूर्व-आईएएस अधिकारी प्यारी मोहन महापात्र की खाली जगह को भरना शुरू कर दिया। प्यारी मोहन महापात्रा को सीएम पटनायक को हटाने के प्रयास के बाद पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। पांडियन ने नवीन पटनायक के समक्ष अपनी प्रभावशाली भूमिका साबित की। मुख्यमंत्री के अटूट विश्वास भरोसे वह सरकार में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका में आ गए। मौजूदा स्थिति के बीच सरकार से जुड़े महत्वपूर्ण सूत्रों की ओर से दावा किया जा रहा है कि वीके पांडियन बीजू जनता दल में शीर्ष राजनीतिक रणनीतिकार बनेंगे। वह खुद चुनाव लड़ सकते हैं।
ओडिशा में विधानसभा चुनाव
ओडिशा में विधानसभा चुनाव अगले साल की शुरुआत में कराए जा सकते हैं। ओडिशा के विधानसभा चुनाव आम तौर पर लोकसभा चुनाव के साथ ही आयोजित होते हैं। ऐसे में अनुमान है कि अप्रैल-मई में आम चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी कराए जा सकते हैं। रिटायरमेंट के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि चुनाव में पांडियन बड़ी भूमिका में दिखेंगे।
ओडिशा में सरकार मतलब नवीन- पांडियन
ओडिशा में सरकार का मतलब मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तथा उनके सचिव वीके पांडियन है। नवीन सरकार के कई मंत्री तक पांडियन का पैर छूकर आशीर्वाद लेते कमरे में कैद हुए हैं। कहा जाता है कि नवीन पटनायक तक पहुंचने का वह एकमात्र विकल्प हैं। नवीन पटनायक के सभी फसलों में पांडियन की भूमिका ही सबसे अहम होती है। कई बार विपक्षी दल पांडियन की भूमिका को लेकर सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन नवीन पटनायक ने कभी भी पांडियन को अपने से अलग नहीं किया। सारे राजनीतिक हमले झेलने के बावजूद पांडियन को हमेशा अपने सबसे करीब रखा।
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