पटना : लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा प्रखंड स्थित पोखरामा गांव का सूर्य मंदिर अपनी आस्था और भव्यता के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल भगवान सूर्य की पूजा का केंद्र है, बल्कि यहां का वातावरण और यहां की धार्मिक परंपराएं भी इसे एक अनोखा स्थल बनाती हैं। खासकर छठ पूजा के दौरान, जब इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। यह स्थल धार्मिक आस्था का प्रतीक बन जाता है।
मंदिर का इतिहास और निर्माण की कहानी
पोखरामा गांव का सूर्य मंदिर अपनी स्थापना के लिए एक अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय रामकिशोर सिंह को जाता है, जो पोखरामा गांव के निवासी थे। एक रात उन्हें बार-बार स्वप्न में भगवान सूर्य की प्रेरणा मिली, जिसमें वह यह संदेश दे रहे थे कि गांव के पास स्थित शिवगंगा तालाब के किनारे सूर्य देव का मंदिर बनाना चाहिए। इस दिव्य प्रेरणा के बाद रामकिशोर सिंह ने अपने गांववासियों से सहयोग लिया और इस मंदिर का निर्माण शुरू किया।
मंदिर की विशेषताएं और स्थापत्य
इस मंदिर की सबसे अद्वितीय विशेषता यहां स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा है, जो सात अश्वों पर सवार हैं। यह प्रतिमा भक्तों को अपनी दिव्य उपस्थिति से मंत्रमुग्ध कर देती है। इसके अलावा, इस मंदिर में पंच देवताओं—सूर्य, गणेश, दुर्गा, विष्णु और शिव की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं, जो इस स्थल को और भी पवित्र बनाती हैं।
मंदिर की दीवारों पर भगवान सूर्य की उपासना और उनकी महिमा के शास्त्रों के श्लोक भी खुदे हुए हैं, जो भक्तों को सूर्य देव के महत्व और पूजन विधि से परिचित कराते हैं। इन श्लोकों के माध्यम से श्रद्धालु सूर्य पूजा के आध्यात्मिक आयामों को समझने का प्रयास करते हैं।
आस्था का केंद्र : छठ पूजा और शिवगंगा तालाब
पोखरामा का सूर्य मंदिर विशेष रूप से महापर्व छठ के दौरान बहुत लोकप्रिय हो जाता है। इस दौरान श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां आते हैं और शिवगंगा तालाब में स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक महत्ता भी अत्यधिक है।
ग्रामीणों के अनुसार पोखरामा के लोग भगवान सूर्य को अपने कुल देवता मानते हैं, और इसलिए यहां के लोक गीतों में भी सूर्य मंदिर का उल्लेख मिलता है। वे मानते हैं कि सूर्य देव की कृपा से ही उनका जीवन सुखमय और समृद्धिपूर्ण होता है।
पुजारी का अनुभव और श्रद्धालुओं का विश्वास
सूर्य मंदिर के मुख्य पुजारी दिलीप पांडेय बताते हैं कि हर साल छठ पूजा के समय मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत बड़ी होती है। यहां की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा करते हैं, उनकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं। उनका कहना है कि भगवान सूर्य के प्रति इस गहरी श्रद्धा और विश्वास ने इस मंदिर को एक शक्तिशाली धार्मिक स्थल बना दिया है, जहां लोग अपनी आस्थाओं के साथ आकर पूजा करते हैं।
सूर्य मंदिर का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
पोखरामा का सूर्य मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह स्थानीय समाज के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहां के लोग इस मंदिर को अपनी आस्था का केंद्र मानते हैं। हर साल होने वाली छठ पूजा के दौरान यहां का माहौल विशेष रूप से भक्तिमय और उत्सवमूलक होता है। श्रद्धालु यहां आकर न केवल अपनी धार्मिक आकांक्षाओं को पूरा करते हैं बल्कि सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा भी बनते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि यह मंदिर उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है और इसकी पूजा-पद्धतियां उनके समाज की गहरी धार्मिक संवेदनाओं को व्यक्त करती हैं। इस मंदिर में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या यह सिद्ध करती है कि यह स्थान केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण बन चुका है।
लखीसराय के पोखरामा सूर्य मंदिर का इतिहास इसके स्थापत्य और यहां की धार्मिक परंपराएं इसे एक अद्वितीय स्थान बनाती हैं। रामकिशोर सिंह द्वारा स्थापित इस मंदिर में भगवान सूर्य के साथ-साथ अन्य देवताओं की पूजा भी होती है, जो इसे एक शक्तिशाली धार्मिक केंद्र बनाता है। छठ पूजा के दौरान यहां की भव्यता और श्रद्धा का दृश्य देखना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। यह मंदिर न केवल आस्था का, बल्कि विश्वास, सांस्कृतिक परंपरा और सामाजिक एकता का भी प्रतीक बन चुका है। यहां आकर श्रद्धालु न केवल धार्मिक संतुष्टि प्राप्त करते हैं बल्कि जीवन के शांति और समृद्धि की ओर भी अग्रसर होते हैं।
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