सेंट्रल डेस्क : भारत के सबसे प्रतिष्ठित और परोपकारी उद्योगपतियों में से एक, रतन नवल टाटा का बुधवार रात को निधन हो गया। पूरा देश इस समाचार से शोकाकुल है। 1991 से 2012 तक टाटा समूह की बागडोर संभालने वाले रतन टाटा की विरासत केवल व्यवसायिक उपलब्धियां भर नहीं हैं, बल्कि इस भाव में निहित है ‘भारत औऱ भारतीय प्रथम’।
एक प्रतिष्ठित पारसी पुरोहित परिवार में जन्मे रतन टाटा का जन्म मुंबई में 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। जीवन की शुरूआत में ही उन्हें व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इनमें से एक उनके माता-पिता का अलगाव भी था। रतन टाटा के पालन-पोषण में उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तमाम उतार-चढ़ाव और अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सर रतन टाटा का प्रवेश 1961 में टाटा ग्रुप में हुआ। शुरूआत में उन्होंने टाटा स्टील में फ्लोर पर काम किया, ब्लू कॉलर वर्कर्स के साथ उन्होंने विनम्रता से काम शुरू किया। इस अनुभव से उन्हें भारत के औद्योगिक विकास को संचालित करने की समझ आई।
1991 में टाटा ग्रुप में परिवर्तन तब आया, जब जेआरडी टाटा के बाद उन्होंने टाटा संस के अध्यक्ष (चेयरमैन) का पद संभाला। तब टाटा समूह का टर्नओवर 5 बिलियन डॉलर था। लेकिन अपनी दूरदर्शिता से उन्होंने अपने रिटायरमेंट तक कंपनी को 100 बिलियन डॉलर से अधिक की कंपनी बना दी। आज टाटा समूह टाटा स्टील, ऑटोमोबाइल, आईटी सेवाओं से लेकर टाटा नमक, टाटा चाय समेत 250 से अधिक उत्पाद बनाता और बेचता है। कंपनी 100 से अधिक देशों में फैली हुई है।
रतन टाटा का विजन इतना दमदार था कि उन्होंने टाटा ग्रुप को वैश्विक शक्ति बनाया। उन्होंने देश की छवि को ग्लोबली मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण का लाभ उठाया। इसके कुछ नमूने इस प्रकार हैं…
टेटली : कंपनी द्वारा साल 2000 में टेटली का अधिग्रहण किया गया। एक ब्रिटिश चाय कंपनी, जिसका अधिग्रहण टाटा समूह ने 450 मिलियन डॉलर में किया। यह किसी भारतीय कंपनी द्वारा की गई पहली विदेशी खरीद थी। इससे टाटा ने ग्लोबल बेवरेज के बाजार में एंट्री मारी।
कोरस : 13 अरब डॉलर के निवेश से टाटा कंपनी दुनिया के सबसे बड़े स्टील प्रोड्यूसर की श्रेणी में आ खड़ी हुई। 2007 में टाटा ग्रुप ने यूरोप की दिग्गज स्टील कंपनी कोरस स्टील का अधिग्रहण किया।
जगुआर लैंडरोवर : 2008 में यूरोप की लग्जरी कार ब्रांड को टाटा समूह ने 2.3 बिलियन डॉलर में अपने अधीन किया। इसके साथ ही टाटा मोटर्स एक वैश्विक ऑटोमोटिव पावर बन गई। इससे लग्जरी कार ब्रांड्स भी नवीन हो गई।
‘भारत और भारतीय पहले‘ की सोच को जमीन पर उतारने के लिए रतन टाटा ने 2008 में टाटा नैनो लांच की। उन्होंने भारत के मध्यमवर्गीय परिवार को गतिशीलता देने के लिए 1 लाख रुपये की सबसे सस्ती कार बनाई। हालांकि नैनो को कमर्शियल सफलता नहीं मिली, लेकिन इसके पीछे उनकी भावना की सराहना हुई।
विपरीत परिस्थितियों में भी रतन टाटा कभी विचलित नहीं हुए। 2008 के मुंबई आतंकी हमले में मुंबई का ताज होटल तहस-नहस हो गया था। लेकिन रतन टाटा ने इस बात को सुनिश्चित किया कि होटल की मरम्मत पहले से भी अधिक मजबूती से हो। हमले के पीड़ित और अपने कर्मचारियों के प्रति उनकी नैतिकता और करुणा भावपूर्ण थी।
अवॉर्डस
व्यापार, परोपकार और देश में रतन टाटा के योगदान को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पद्म भूषण, पद्म विभूषण, Honorary Knight Commander of the order of British Empire (2009), बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर (2006), ओसलो बिजनेस फॉर पीस अवॉर्ड (2010), लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2014), कार्नेज मेडल ऑफ फिलांथ्रोपी (2007), सीएनएन-आईबीएन इंडियन ऑफ द इयर (2006)
F-16 उड़ाने वाले पहले भारतीय
इन सबके अलावा 2007 में एफ-16 उड़ाने वाले वो पहले भारतीय थे। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि एफ-16 अपनी स्पीड के लिए जाना जाता है और रतन टाटा ने इसे 69 वर्ष की उम्र में उड़ाकर अपनी निडरता और साहस का परिचय दिया था।
शिक्षा, स्वास्थय और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में योगदान देने वाली संस्था टाटा ट्रस्ट में भी वे व्यक्तिगत रूप से जुड़े हुए थे। उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि टाटा संस के लाभांश के 600-65 प्रतिशत परोपकार के कामों में खर्च हो।
जैसा कि भारत एक लेजेंड के निधन का शोक मना रहा है, रतन टाटा के व्यापार, समाज औऱ देश के प्रति योगदान को आने वाली अनगिनत पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। उनके जीवन का मकसद न केवल धन अर्जित करना था, बल्कि लोगों के लिए नैतिक मूल्य भी पैदा करना था।
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