बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा ने बुधवार को केंद्र के प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें इसके राज्य स्वायत्तता और वक्फ बोर्ड प्रशासन पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई गई। विपक्ष के सदस्यों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ बहिर्गमन किया।
यह प्रस्ताव कानून मंत्री एच.के. पाटिल द्वारा प्रस्तुत किया गया था और सत्ताधारी पार्टी द्वारा इसे समर्थन दिया गया। प्रस्ताव में केंद्र सरकार से विधेयक पर पुनर्विचार करने की अपील की गई, इसके साथ ही विभिन्न हितधारकों से व्यापक परामर्श की आवश्यकता पर जोर दिया गया। कांग्रेस ने कहा कि यह संशोधन नियंत्रण को केंद्रीकृत करेगा, जो राज्य के वक्फ संपत्तियों और प्रशासनिक अधिकारों को कमजोर करेगा।
कर्नाटक की जनता और देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों
पाटिल ने कहा कि सदन ने एकमत से वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यह राज्य की जनता के हितों के खिलाफ था। प्रस्ताव में केंद्र से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की गई। पाटिल ने कहा, ‘यह अधिनियम देश के सभी वर्गों की आकांक्षाओं और अवसरों को प्रतिबिंबित नहीं करता। इस सदन ने वक्फ अधिनियम में संशोधन को पूरी तरह से अस्वीकार किया, क्योंकि यह कर्नाटक की जनता और देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है’।
राज्य के 28 समर्पित संस्थान शामिल
इस प्रस्ताव में कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड और अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई चिंताओं का भी उल्लेख किया गया, जिन्होंने प्रस्तावित बदलावों का विरोध किया। ‘संस्थाओं और धार्मिक निकायों के विरोध के बावजूद, यह विधेयक एकतरफा रूप से संसद में पेश किया गया’, प्रस्ताव में कहा गया। पाटिल ने आगे कहा कि वक्फ अधिनियम में 2013 के संशोधनों ने पहले ही वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक ढांचा प्रदान किया था, जिसमें राज्य में 28 समर्पित संस्थान शामिल हैं।
संविधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए, प्रस्ताव ने यह भी बताया कि वक्फ संपत्तियों से संबंधित मामले समवर्ती सूची के तहत आते हैं, जिसमें राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को विधायी अधिकार है। हालांकि, प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि प्रस्तावित संशोधन राज्य के कार्यकारी और विधायी अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं।
विश्वेश्वरैया ने जिस स्कूल में पढ़ाई की थी, उसे भी ढहाने की तैयारी
प्रस्ताव में कहा गया है कि हमारी सूची के एंट्री 10 में कब्रिस्तान का उल्लेख किया गया है, जबकि एंट्री 45 भूमि और भूमि अभिलेखों से संबंधित है। ये विषय राज्य सरकार के विशेष अधिकार क्षेत्र में आते हैं। केंद्र को इन मामलों से संबंधित कानूनों में बदलाव करने का अधिकार नहीं है।
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि यह बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रहा है। स्थिति बिगड़ चुकी है। यह सिर्फ किसानों का मामला नहीं है, लोग बेदखल हो रहे हैं। यहां तक कि जिस स्कूल में विश्वेश्वरैया ने पढ़ाई की थी, उसे भी ढहाने के लिए चिन्हित किया गया है।
अशोक ने राज्य सरकार के रुख पर भी सवाल उठाए और कहा, हजारों एकड़ भूमि लूटी गई है। लोग जहां-तहां भूमि पर दावा कर रहे हैं। यहां तक कि गूगल ने भी इसे दर्ज किया है। क्या यह हमारे शासनकाल में हुआ था या किसी और के?