टीवी पर इंडिया वर्सेस पाकिस्तान क्रिकेट मैच का प्रसारण चल रहा था। सबकी निगाहें मुकाबले में फेंकी जा रही एक-एक गेंद पर टिकी थीं। इतने में फन्ने गुरु पहुंच गए। आते ही पहला सवाल उछाल दिया। अरे बताओ,कौन जीत रहा है मैच में? भारतीय टीम के प्रदर्शन से टीवी दर्शकों का उत्साह चरम पर था। सो, भीड़ के बीच से आवाज आई। कौन जीतेगा गुरु, ‘इंडिया’ को छोड़कर? गुरु शायद यही सुनना चाहते थे। बोले, ये तो ठीक कहा तुम लोगों ने, क्रिकेट में हमारी टीम का कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
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गुरु का मूड देखते हुए सवालिया निगाहों से उनकी ओर देखा। शायद, वह भाव समझ गए, बोले, अब इसमें तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। गुरु को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता था, तो सिर हिला कर इनकार कर दिया। लगातार, इच्छा के अनुसार जवाब मिलने से गुरु पूरी तरह प्रसन्न मुद्रा में आ गए। लिहाजा, मौका देखकर गुरु के आगे अपनी रुचि का सवाल पेश कर दिया।
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क्रिकेट तो ठीक है गुरु, झारखंड की नौकरशाही का क्या हाल है? कुछ बताएं। गुरु शुरू हो गए। बोले, क्रिकेट की तरह ही प्रदेश की नौकरशाही में भी एक से बढ़कर एक ‘एथलीट’ हैं। मगर, यहां जलवा ‘कमल राज’ का है। महकमा चाहे भवन का हो या खनन का, उद्योग का हो या दिल्ली दरबार का। हर तरफ बस ‘राज’ ही राज है। कई धावक हैरान हैं। परेशान हैं। समझ नहीं पा रहे, आखिर वह मुकाबले में टिक क्यों नहीं पा रहे? हां, गुरु सही बोल रहे हैं। एक लाइन जोड़ कर फिर चुप हो गया।
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समर्थन मिलने के साथ गुरु बात आगे बढ़ाते हुए बोले- दरअसल, इस प्रदर्शन के पीछे का पूरा ‘खेल’ भी क्रिकेट की तरह ही ‘धैर्य’ का है। सिस्टम इस बात की अपेक्षा करता है कि विपरीत हालात में आप कितने धैर्य से टीम को आगे ले जा सकते हैं? जरूरत के समय कितनी सहूलियत से काम करते हैं? सिस्टम को कितना सरल रखते हैं? और सौ बात की एक बात, आखिर कुछ तो बात होगी बंदे में, जो बिना किसी तोल-मोल के इस मुकाम पर कायम है।
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जलन और ईर्ष्या से आगे बढ़कर समझने वाली बात यह है कि केवल दौड़ने से सबकुछ नहीं मिलता, पिच पर टिक कर खेलना पड़ता है। परिणाम खुद ब खुद जगह तय कर देते हैं। खेल चाहे कोई भी हो, चमकता हमेशा प्रतिभाशाली ही है। आसमान में रोज दिखने वाले अनगिनत तारों के बीच ध्रुवतारा एक ही होता है। उसे चमकने से कौन रोक सकता है?’
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