मनेंद्रगढ़ : छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ जिले को अब इतिहास, पुरातत्व और प्रकृति प्रेमियों के लिए नया आकर्षण स्थल माना जाएगा। यहां हसदेव नदी के किनारे मिले 28 करोड़ साल पुराने समुद्री जीवाश्म ने वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का ध्यान खींचा है। छत्तीसगढ़ सरकार इस विशेष क्षेत्र को एक मैरीन फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जो न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे एशिया के लिए गर्व का विषय बनेगा।
मुख्यमंत्री का बयान: छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात
मुख्यमंत्री कार्यालय ने मंगलवार को इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि मनेंद्रगढ़ में यह खोज छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। यह समुद्री जीवाश्म न केवल एक वैज्ञानिक शोध का केंद्र बनेगा, बल्कि यहां पर्यटन से जुड़े रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे। राज्य सरकार अपनी प्राकृतिक धरोहरों को सहेजने और उनका विकास करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
मैरीन फॉसिल्स पार्क: पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए नया स्थल
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र को मैरीन फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित किया जाएगा, जिससे यह क्षेत्र एक बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट बन जाएगा। यह साइट पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए एक प्रमुख स्थल बनेगा, जहां वे करोड़ों साल पुराने समुद्री जीवों की उत्पत्ति और उनके विकास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इस परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार विशेष रूप से उत्साहित है।
28 करोड़ साल पुराना जीवाश्म: विज्ञान और इतिहास की महत्वपूर्ण खोज
मनेंद्रगढ़ में मिले जीवाश्म के बारे में डॉ. विनय कुमार पांडेय, पुरातत्व विभाग के नोडल अधिकारी, ने बताया कि यह एशिया का सबसे बड़ा समुद्री जीवाश्म है। कार्बन डेटिंग से यह पुष्टि हुई है कि यह जीवाश्म 28 करोड़ साल पुराना है। यह खोज 1954 में डॉ. एसके घोष द्वारा की गई थी, और उसके बाद से कई वैज्ञानिक टीमें इस पर अध्ययन कर चुकी हैं। 2015 में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंसेज के वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि की थी।
प्राचीन समुद्र और विलुप्त जीवों के अवशेष
वैज्ञानिकों के अनुसार, 28 करोड़ साल पहले वर्तमान हसदेव नदी के स्थान पर एक बड़ा ग्लेशियर था, जो बाद में समुद्र में समा गया। इस समय समुद्री जीव-जंतु मनेंद्रगढ़ की वर्तमान हसदेव नदी में प्रवेश कर गए थे। हालांकि ये जीव धीरे-धीरे विलुप्त हो गए, लेकिन उनके जीवाश्म आज भी यहां पाए जाते हैं। यह जीवाश्म पृथ्वी के प्राचीन इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करते हैं।
राष्ट्रीय धरोहर: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षण
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने इस क्षेत्र को 1982 से राष्ट्रीय जियोलॉजिकल मोनुमेंट्स के रूप में संरक्षित किया है, जो इस स्थान के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है।
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