नई दिल्ली : दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है, जहां 17 सीटों पर बाहरी नेताओं ने अपनी धाक जमाई है। यूपी और उत्तराखंड से आए इन नेताओं ने न सिर्फ चुनावी मैदान में अपनी जीत दर्ज की, बल्कि दिल्ली की सियासत को भी एक नई दिशा दी। खास बात यह है कि यह बाहरी नेता दिल्ली के प्रमुख राजनीतिक दलों, आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों से चुनाव जीतकर आए हैं।
यूपी से दिल्ली की सियासत में नए चेहरे
यूपी के तीन नेता दिल्ली विधानसभा में पहुंचे, जिनमें ओखला विधानसभा सीट से जीतने वाले अमानतुल्लाह खान का नाम प्रमुख है। मेरठ के रहने वाले अमानतुल्लाह ने बीजेपी के मनीष चौधरी को हराया। मनीष चौधरी, जो कि गुर्जर समुदाय से हैं, इस सीट पर जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक चुके थे, लेकिन अमानतुल्लाह ने उन्हें पराजित कर दिया।
गोपाल राय, जो मऊ से हैं, दिल्ली की बाबरपुर सीट से विधायक चुने गए हैं। दिलचस्प यह है कि गोपाल राय दिल्ली आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा, चौधरी मतीन अहमद के बेटे जुबेर अहमद ने हापुड़ से सीलमपुर सीट पर जीत दर्ज की है। यह सीट मतीन अहमद के लिए भी महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि वे इस सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं।
उत्तराखंड से दिल्ली की राजनीति में नया रंग
उत्तराखंड से जुड़े दो नेता भी दिल्ली विधानसभा में जीतने में सफल रहे। रवींद्र नेगी ने पटपड़गंज सीट पर आम आदमी पार्टी के अवध ओझा को हराया। पिछली बार इस सीट पर नेगी को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार उन्होंने शानदार वापसी की। वहीं, उत्तराखंड के मोहन सिंह बिष्ट ने मुस्तफाबाद सीट से जीत दर्ज की। मोहन सिंह बिष्ट दिल्ली में पहले भी विधायक रह चुके हैं। मुस्लिम बहुल इस सीट पर उनकी जीत ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी है। बिष्ट ने आम आदमी पार्टी के आदिल हुसैन को हराया, जो दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन के करीबी माने जाते थे।
बाहरी नेताओं का दिल्ली की सियासत पर असर
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बाहरी नेताओं के जीतने का असर दिल्ली की सियासत पर साफ नजर आ रहा है। यह स्पष्ट है कि दिल्ली के राजनीतिक दृश्य में यूपी और उत्तराखंड के नेताओं का प्रभाव अब और भी मजबूत हुआ है। इन नेताओं ने अपनी जीत से यह साबित किया है कि दिल्ली के मतदाता अब स्थानीय नेताओं के अलावा बाहरी नेताओं को भी समर्थन दे रहे हैं।