नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि हाल ही में संशोधित वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं की अगली सुनवाई तक कोई वक्फ नियुक्ति नहीं की जाएगी और न ही वक्फ बोर्ड द्वारा दावा की गई संपत्तियों की स्थिति में कोई बदलाव किया जाएगा।
‘यूजर द्वारा वक्फ’ प्रावधान पर कोर्ट की सख्त नजर
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वर्तमान वक्फ संपत्तियों, जिनमें ‘यूजर द्वारा वक्फ’ के अंतर्गत दावा की गई संपत्तियां भी शामिल हैं, में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
‘वक्फ बाय यूजर’ वह प्रावधान है जिसके तहत मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक या चैरिटेबल उद्देश्यों से इस्तेमाल की जा रही संपत्तियों को बिना दस्तावेजों के वक्फ घोषित किया जा सकता है। बुधवार को हुई सुनवाई में इसी प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता का विषय बताया था। कोर्ट ने कहा, “हम नहीं कह रहे कि सभी ‘वक्फ बाय यूजर’ गलत हैं, लेकिन इस पर चिंतन आवश्यक है।”
विवादित संशोधन: वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता
हाल ही में संसद से पारित वक्फ अधिनियम में संशोधन के तहत अब वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है। संशोधन के अनुसार, केंद्रीय वक्फ परिषद में 22 में से अधिकतम 8 मुस्लिम सदस्य और राज्य वक्फ बोर्ड में 11 में से अधिकतम 4 मुस्लिम सदस्य ही रह सकते हैं।
इस संशोधन ने देशभर में विरोध-प्रदर्शन की स्थिति पैदा कर दी है। पश्चिम बंगाल में इस मुद्दे को लेकर हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वक्फ कानून में बदलाव को लागू करने से इनकार कर दिया। भाजपा ने इसे ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: “क्या हिंदू बोर्ड में मुसलमान होंगे?”
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार से तीखे शब्दों में सवाल किया कि “क्या आप हिंदू धार्मिक न्यासों के बोर्ड में मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति देंगे?” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह फिलहाल केवल पांच मुख्य रिट याचिकाओं की सुनवाई करेगा और शेष 100 से अधिक याचिकाएं ‘निस्तारित’ मानी जाएंगी।
संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन होने का आरोप
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधित वक्फ अधिनियम से मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, विशेष रूप से समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का।
इस कानून को चुनौती देने वालों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, डीएमके, सीपीआई और जेडीयू जैसे विपक्षी दलों के नेता शामिल हैं। जेडीयू का विरोध खास मायने रखता है क्योंकि बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां मुस्लिम जनसंख्या बड़ी संख्या में है।
धार्मिक संगठनों का विरोध, कानून की वापसी की मांग
जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे धार्मिक संगठनों ने भी कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं। कुछ याचिकाकर्ताओं ने कानून को पूरी तरह रद्द करने की मांग की है जबकि अन्य ने इसके प्रभाव को स्थगित रखने की अपील की है।
फिलहाल कोई नियुक्ति नहीं, अगली सुनवाई तक स्थिति यथावत
सरकार ने कोर्ट से एक सप्ताह का समय मांगा है ताकि वह वक्फ कानून में किए गए बदलावों पर अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया दे सके। कोर्ट ने सरकार को यह समय प्रदान कर दिया है और स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक न तो वक्फ बोर्ड में नियुक्तियां होंगी और न ही संपत्तियों की स्थिति में कोई बदलाव किया जाएगा।
अंतरिम रोक की मांग पर अभी नहीं हुआ निर्णय
बुधवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित वक्फ कानून पर अंतरिम रोक लगाने की योजना बनाई थी, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के अनुरोध पर निर्णय को टाल दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह केवल तीन प्रमुख बिंदुओं पर विचार करेगा:-
- ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत पहले कोर्ट द्वारा मान्य संपत्तियों की वैधता पर संशय।
- वक्फ परिषदों और बोर्डों में गैर-मुस्लिम बहुसंख्या का मुद्दा।
- जांचाधीन संपत्तियों को वक्फ घोषित न किया जाना।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जवाब आने तक वक्फ की संपत्तियों में कोई भी बदलाव नहीं होगा। वह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन संविधान के सर्वोच्च संरक्षक के रूप में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की जांच जरूर करेगा। मामले की अगली सुनवाई 5 मई को होगी।