एंटरटेनमेंट डेस्क : गदर और अपने जैसी हिट फिल्में दे चुके डायरेक्टर अनिल शर्मा एक और इमोशनल रोलर-कोस्टर ड्रामा ‘वनवास’ के साथ वापस आ गए हैं। वनवास का टीजर रिलीज कर दिया गया है, जिसमें एक बाप-बेटे का रिश्ता कैसे पिता के वनवास तक पहुंचता है, यह झलक दिखाई गई है। अनिल शर्मा और जी स्टूडियोज की नई पेशकश वनवास का टीजर जारी होते ही दर्शकों के दिलों को छू गया है।
अपने, गदर: एक प्रेम कथा और गदर 2 जैसी यादगार फिल्मों के लिए मशहूर अनिल शर्मा इस बार एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं, जो परिवार, रिश्तों और बुढ़ापे में अपनों से मिलने वाली असली कद्र को गहराई से बयां करती है। फिल्म में नाना पाटेकर और उत्कर्ष शर्मा मुख्य भूमिका में हैं, और दोनों के किरदार पारिवारिक सम्मान और प्यार के नाम पर किए गए बलिदानों को एक नए नजरिये से पेश करने का वादा करते हैं। वनवास का यह टीज़र एक संवेदनशील विषय पर आधारित है, जो हर उस व्यक्ति की कहानी है, जो उम्र के साथ अपनों का साथ खो देने के दर्द को समझता है।
‘पिता भगवान के सामान होते हैं’
टीजर की शुरुआत एक श्लोक से होती है, जो कहता है कि “पिता भगवान के समान होते हैं।” इस पंक्ति के साथ ही कहानी की संवेदनशीलता का आभास होने लगता है। टीजर में नाना पाटेकर का किरदार एक धार्मिक यात्रा के दौरान अपने परिवार से दूर हो जाता है। वे अपने बेटे को पुकारते हैं, लेकिन कोई उनकी मदद के लिए नहीं आता। इस बीच उत्कर्ष शर्मा का किरदार एक मंदिर में पूजा करते हुए दिखाई देता है। कुछ ही पल बाद, हम नाना पाटेकर के किरदार का अंतिम संस्कार होते हुए देखते हैं, जो दर्शकों के दिलों को गहराई तक छू जाता है।
टीजर के अंत में नाना पाटेकर अपने बेटे से एक सवाल पूछते हैं, “क्या तुम्हें पैदा होते ही कूड़ेदान में छोड़ देना चाहिए था?” यह सवाल हर दर्शक को झकझोर देता है और फिल्म की टैगलाइन “कभी-कभी अपनों द्वारा ही वनवास मिल जाता है” इस दर्दनाक सच्चाई को रामायण में भगवान राम के वनवास के संदर्भ में जोड़ती है।
अमिताभ-हेमा के बागबान की याद दिलाता ‘वनवास’
वनवास का टीज़र न केवल पारिवारिक रिश्तों में प्यार और कर्तव्य की गहराई को दिखाता है बल्कि उसमें छुपी हुई कमजोरी और विडंबनाओं को भी बखूबी उजागर करता है। ‘वनवास’ बच्चों द्वारा बुढ़ापे में अपने माता-पिता को छोड़ देने के कठिन विषय के इर्द-गिर्द घूमता है। यह फिल्म अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की बागबान की याद दिलाती है, जो माता-पिता के संघर्ष और उनके दर्द को बखूबी पेश करती है।
वनवास में यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्कर्ष शर्मा और नाना पाटेकर के किरदार किस तरह से जुड़े हैं और कहानी कैसे आगे बढ़ती है। रिश्तों के बदलते रंग और बुढ़ापे में अपनों से मिलने वाले सपोर्ट की उम्मीदों के बीच यह फिल्म एक भावनात्मक सफर पर ले जाने का वादा करती है।