New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली पांच प्रमुख याचिकाओं पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इन याचिकाओं में प्रमुख मुस्लिम नेताओं और संगठनों की ओर से दायर याचिकाएं शामिल हैं, जिनमें जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, महाराष्ट्र के व्यापारी मुहम्मद जमील मर्चेंट, मणिपुर के विधायक शेख नूरुल हसन और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मोहम्मद फजलुर्रहिम शामिल हैं। इन याचिकाओं को ‘लीड पिटीशन’ माना जाएगा, जबकि अन्य याचिकाओं को हस्तक्षेप याचिकाएं माना जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा, ‘100 या 120 याचिकाओं पर सुनवाई करना असंभव है’, इस कारण से केवल पांच याचिकाओं को प्राथमिकता दी गई है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025: मुख्य प्रावधान
इस अधिनियम के तहत वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, वक्फ संपत्तियों की स्वामित्व की पुष्टि के लिए सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति और वक्फ संस्थाओं के लिए निर्धारित योगदान की सीमा में बदलाव जैसे प्रावधान शामिल हैं। इसमें वक्फ ट्रिब्यूनलों को सशक्त बनाने, चयन प्रक्रिया को संरचित करने और विवाद समाधान की दक्षता बढ़ाने के लिए प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा, वक्फ संस्थाओं के लिए निर्धारित योगदान को 7 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया गया है।
वक्फ संस्थाओं की वार्षिक आय 1 लाख रुपये से अधिक होने पर राज्य द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों द्वारा ऑडिट अनिवार्य किया गया है। एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को स्वचालित किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित होगी। इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि केवल वे व्यक्ति जो कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करते हैं, वे अपनी संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित कर सकते हैं।
राज्यों की स्थिति और संवैधानिक प्रावधान
केंद्र सरकार के इस अधिनियम के खिलाफ विभिन्न राज्यों ने विरोध जताया है। तमिलनाडु सरकार ने इसे ‘जनविरोधी और अल्पसंख्यक विरोधी’ करार दिया है। पार्टी ने विधानसभा में इस विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। जम्मू और कश्मीर सरकार ने भी इस संशोधन का विरोध किया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की है कि उनकी सरकार इस कानून को लागू नहीं करेगी।
संविधान के अनुच्छेद 245 के अनुसार, संसद पूरे देश या उसके किसी हिस्से के लिए कानून बना सकती है और अनुच्छेद 256 राज्यों को यह सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपता है कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन किया जाए। यदि कोई राज्य इस निर्देश का पालन नहीं करता है, तो अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
अनुच्छेद 131 के तहत, यदि कोई राज्य यह मानता है कि केंद्र द्वारा बनाए गए कानून उसके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, तो वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई और विभिन्न राज्यों का विरोध इस बात का संकेत है कि यह कानून संवैधानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस कानून की संवैधानिक वैधता और इसके प्रभावों को स्पष्ट करेगा।