कोलकाता: पश्चिम बंगाल भाजपा के दो शीर्ष नेताओं, शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार के बीच बढ़ते मतभेदों ने पार्टी में हलचल मचा दी है। इस मुद्दे पर कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू कर दिया है।
कार्यकर्ताओं में असंतोष, केंद्रीय नेतृत्व की बैठक की तैयारी
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व सह-अध्यक्ष, सामसुर रहमान ने इस विवाद को लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि दोनों नेताओं के बीच का बढ़ता मतभेद कार्यकर्ताओं में निराशा का कारण बन रहा है, जो पार्टी के लिए चिंताजनक है।
भा.ज.पा. के केंद्रीय नेतृत्व की निगाहें इस मुद्दे पर हैं, खासकर संगठनात्मक चुनाव के समय। फरवरी में नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है, और इससे पहले यह मतभेद राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गए हैं।
शुभेंदु और सुकांत के बीच सार्वजनिक बयानबाजी
हाल ही में भाजपा की विशेष संगठनात्मक कार्यशाला में शुभेंदु अधिकारी की अनुपस्थिति पर सुकांत मजूमदार ने टिप्पणी की थी कि शुभेंदु पार्टी की बैठकों में शामिल नहीं होते क्योंकि उन्हें सहज महसूस नहीं होता। इस बयान पर शुभेंदु अधिकारी ने पलटवार करते हुए कहा कि सुकांत द्वारा दिया गया बयान उनके खुद के विचार हैं, जिनका जवाब सुकांत ही दे सकते हैं।
दिल्ली में अहम बैठक की योजना
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जल्द ही शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार को दिल्ली बुलाकर इस विवाद पर बातचीत करेंगे। इस बैठक में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति और दोनों नेताओं के बीच के मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की जाएगी।
तृणमूल कांग्रेस की टिप्पणी पर सुकांत का जवाब
वहीं, तृणमूल कांग्रेस के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने हाल ही में शुभेंदु अधिकारी को भाजपा में सुकांत मजूमदार से अधिक राजनीतिक अनुभव वाला नेता बताया। इस पर सुकांत मजूमदार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने बिप्लव मित्र और अर्पिता घोष को हराया है, लेकिन कुणाल घोष के बयान में शुभेंदु अधिकारी का नाम लेना शुभेंदु समर्थकों को नागवार गुज़रा।
2026 विधानसभा चुनाव की तैयारी
केंद्रीय नेतृत्व इस मुद्दे पर चर्चा करेगा कि शुभेंदु अधिकारी और उनके समर्थक पार्टी की मुख्यधारा से क्यों दूरी बनाए हुए हैं। पश्चिम बंगाल में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए, इस बैठक को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

