सेंट्रल डेस्कः बेंगलुरू में एक आईटी प्रोफेशनल द्वारा 40 पन्नों का खत और 1.30 घंटे का वीडियो पीछे छोड़, आत्म हत्या करने का मामला चर्चा में है। अतुल ने अपने ही घर में सुसाइड कर लिया। इस सुसाइड ने समाज में कानून के दुरुपयोग और महिलाओं द्वारा कानून का गलत इस्तेमाल किए जाने को लेकर गंभीर बहस छिड़ गई है। आईपीसी की धारा 498(ए) का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। 2018 में भी बेंगलुरू में #Mentoo मूवमेंट ने ट्रेंड किया था। अब इस घटना के बाद यह टर्म फिर से ट्रेंड कर रहा है।
अतुल ने अपने सुसाइड नोट में एक-एक बात की विस्तृत जानकारी दी है और कानून और उसके दुरुपयोग का खुलासा किया है। अतुल के सुसाइड नोट के हर पन्ने पर Justice is Due लिखा हुआ था। अब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त वॉर्निंग जारी करते हुए इसका दुरुपयोग करने से मना किया है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक विवाद मामलों की धारा 498(ए) का इस्तेमाल व्यक्तिगत प्रतिशोध के हथियार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए।
अतुल के सुसाइड नोट ने देश की कानूनी व्यवस्था को आत्म हत्या के लिए उकसाया जाने वाला बता दिया है। कानूनी तौर पर सुसाइड के लिए उकसाना आईपीसी और बीएनएस दोनों के ही तहत अपराध है। भारतीय न्याय संहिता में आत्महत्या के लिए उकसाने पर 10 साल की कैद और जुर्माना निर्धारित है।
क्या होता है 498 (ए)
विवाहित महिलाओं को उनके पतियों एवं ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने के लिए इस धारा को बनाया गया है। इसके तहत कम से कम तीन साल की सजा और जुर्माना सहित गंभीर दंड का प्रावधान है। यह एक गैर जमानती अपराध है। 1983 में इस धारा को विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से बचाने के लिए पेश की गई थी।
क्रूरता का क्या अर्थ है-
कोई भी जानबूझ कर किया गया व्यवहार, जिसमें महिला को मानसिक और शारीरिक रुप से प्रताड़ित किया जाए। विवाहित महिला का उत्पीड़न किया जाना, जिसमें उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या किसी भी गैर कानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करना।
क्या कहता है मोदी सरकार का नया कानून
मोदी सरकार की ओर से एक नया आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) लेकर आ, जहां धारा 498(ए) बीएनएस में धारा 85 और 86 बन जाता है।
सेक्शन 85 बीएनएस– ससुराल पक्ष का कोई भी व्यक्ति विवाहित महिला के साथ क्रूरता करेगा, उसे तीन साल तक की कैद की सजा दी जाएगी औऱ साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।
सेक्शन 86 बीएनएस– कोई भी जानबूझकर किया गया ऐसा आचरण, जिससे किसी महिला को आतामहत्या करने के लिए प्रेरित करे या महिला को मानसिक व शारीरिक पीड़ा दे, इसके तहत शामिल है।
85 व 86 धारा 498(ए) के ही शब्दसः है, केवल इसमें क्रूरता की परिभाषा पर थोड़ी स्पष्टता दी गई है।
विधायिका पुनः इस पर विचार करे
धारा 498(ए) पर पहली बार बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1992 में टिप्पणी की थी। 2003 में बीएस जोशी बनाम हरियाणा मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि न्याय की जरूरतों को पूरा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल हाईकोर्ट द्वारा किया जा सकता है। पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दायर आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जाए। इसी कथन को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है।
जस्टिस पारदीवाला औऱ जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने आईपीसी की धारा 498 (ए) को तकनीकी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। साथ ही बेंच ने इस बात पर भी जोर दिया कि कानून निर्माता भारतीय न्याय संहिता 498(ए) पर पुनर्विचार करे।