सेंट्रल डेस्क। अनुज चौधरी, उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले में उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) के पद पर कार्यरत हैं। 14 मार्च को होली और शुक्रवार की नमाज एक साथ पड़ने से अनुज चौधरी ने होली के अवसर पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को घर के अंदर रहने की सलाह दी थी, जिसके बाद से विवादों वह में घिर गए थे। हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ।
अनुज चौधरी कौन हैं?
चौधरी एक प्रतिष्ठित पुलिस अधिकारी हैं और सम्भल जिले में डीएसपी के रूप में सेवा दे रहे हैं। पुलिस बल में शामिल होने से पहले उनका कुश्ती में शानदार करियर रहा था, जिसमें उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया था। 1997 से 2014 तक वे राष्ट्रीय चैम्पियन रहे और 2002 और 2010 के राष्ट्रीय खेलों में दो रजत पदक और एशियाई चैंपियनशिप में दो कांस्य पदक जीते थे। खेल के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2001 में लक्ष्मण पुरस्कार और 2005 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।
2012 बैच के तहत डिप्टी एसपी बने अनुज
उन्होंने खेल कोटे के तहत यूपी पुलिस ज्वॉइन की और 2012 बैच के तहत डिप्टी एसपी बने। अपनी फिटनेस, अनुशासन और साहसिक दृष्टिकोण के लिए वह जाने जाते हैं और संवेदनशील मामलों में अपनी निडरता के लिए प्रसिद्ध हैं।
अनुज चौधरी ने क्या कहा?
हाल ही में आयोजित एक शांति समिति बैठक के दौरान चौधरी ने मुस्लिम समुदाय के लोगों से सलाह दी कि वे होली के समय सड़कों पर हो रहे जश्न के खत्म होने तक अपने घरों में रहें। रंगों का त्योहार साल में एक बार आता है, जबकि शुक्रवार की नमाज साल में 52 बार होती है। अगर किसी को होली के रंग नमाज के दौरान समस्या पैदा करते हैं, तो बेहतर है कि वे अंदर ही रहें जब तक होली की गतिविधियां खत्म न हो जाएं।”
इस बयान को विपक्षी नेताओं, धार्मिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तीव्र आलोचना का शिकार किया, जिन्होंने चौधरी पर पक्षपाती होने और धार्मिक स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगाया।
आदित्यनाथ का समर्थन
हालांकि, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चौधरी के बयान का समर्थन करते हुए इसे उनकी कुश्ती पृष्ठभूमि से जोड़ते हुए कहा, “वह एक ओलंपियन, अर्जुन पुरस्कार विजेता और पूर्व पहलवान हैं। पहलवान ऐसे ही बात करते हैं। कुछ लोग उनके शब्दों से आहत हो सकते हैं, लेकिन सत्य को स्वीकार करना चाहिए।” आदित्यनाथ ने यह भी कहा, “होली साल में केवल एक बार मनाई जाती है, जबकि ‘जुम्मा’ नमाज 52 बार होती है। यह बस यह समझाने का प्रयास था कि किसी भी विवाद से बचने के लिए ऐसा कहा गया।”
मुख्यमंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि शुक्रवार की नमाज को बाद में 2 बजे के बाद भी पढ़ी जा सकती है या घर पर ही नमाज अदा की जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने पहले ही इस बारे में सलाह दी थी कि होली की समाप्ति के बाद शुक्रवार की नमाज को 2 बजे के बाद किया जा सकता है।
विपक्षी हमले
आदित्यनाथ के समर्थन ने राजनीतिक हलचल मचा दी और समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने BJP सरकार पर साम्प्रदायिक एजेंडा को बढ़ावा देने और धार्मिक सद्भाव को कमजोर करने का आरोप लगाया। सपा नेता राम गोपाल यादव ने चौधरी पर आरोप लगाया कि उन्होंने सम्भल में नवंबर 2024 के सांप्रदायिक हिंसा में भूमिका निभाई थी। कांग्रेस नेता आदित्य गोस्वामी ने भी चौधरी की टिप्पणी की आलोचना करते हुए इसे जानबूझकर धार्मिक मतभेद बढ़ाने का प्रयास बताया और कहा कि उनका बयान साम्प्रदायिक विघटन का कारण बन सकता है।
जिला प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस विवाद के बढ़ने के बाद, सम्भल के जिलाधिकारी डॉ. राजेन्द्र पेंशिया ने सख्त निर्देश जारी किए, जिसमें अधिकारियों को वरिष्ठ अधिकारियों की मंजूरी के बिना सार्वजनिक बयान देने से मना किया। कोई भी अधिकारी ऐसे बयान न दे जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाए। हमारी प्राथमिकता शांति और व्यवस्था बनाए रखना है, जिलाधिकारी ने कहा।
पिछले विवाद
यह पहली बार नहीं है जब चौधरी चर्चा में आए हैं। इस वर्ष जनवरी में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह पुलिस वर्दी में भगवान हनुमान की गदा लिए हुए धार्मिक जुलूस का नेतृत्व करते नजर आए थे। इस घटना ने उनके निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। इसके बाद उन्हें एक नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया था। हालांकि, चौधरी को अपने मजबूत कानून प्रवर्तन रिकॉर्ड के लिए भी सराहा जाता है, खासकर संगठित अपराध को संभालने और साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए।
सम्भल हिंसा में चौधरी की भूमिका
सम्भल में जामा मस्जिद सर्वे को लेकर हुई हिंसा के दौरान चौधरी घायल हुए थे जब उपद्रवियों ने उन पर गोलियां चलाई थीं। चौधरी को पैर में गोली लगी थी, जिसके बाद उन्होंने कहा कि पुलिस को आत्मरक्षा का अधिकार है। पुलिस बल में शामिल होने का उद्देश्य मौत नहीं है। हम यह वर्दी इसलिए नहीं पहनते कि किसी अज्ञानी उपद्रवी की गोली से मारे जाएं।
संभल हिंसा के दौरान चार युवकों की गोली लगने से मौत हो गई थी। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने गोली नहीं चलाई, बल्कि ये लोग उपद्रवियों द्वारा चलाई गई गोलियों से मारे गए।