फीचर डेस्कः थाईलैंड, जिसे पहले सियाम के नाम से जाना जाता था, अपनी रंगीन संस्कृति, लंबे इतिहास और अपने शाही परिवार के प्रति गहरे सम्मान के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में उठता है, वह यह है कि सभी थाई राजा को ‘रामा’ क्यों कहा जाता है? क्या यह सिर्फ एक परंपरा है, या इसके पीछे कोई विशेष कारण है? इसे समझने के लिए हमें थाईलैंड के इतिहास की जड़ों और भारत के साथ इसके गहरे सांस्कृतिक संबंधों को देखना होगा।
शाही उपाधि ‘रामा’
थाईलैंड और भारत के बीच सिर्फ व्यापार ही नहीं, बल्कि धर्म और संस्कृति के मामले में भी गहरा संबंध है। कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की तरह थाईलैंड भी हिन्दू और बौद्ध परंपराओं से प्रभावित रहा है। थाई समाज में, रामायण को ‘रामकियेन’ के नाम से जाना जाता है। यह सिर्फ एक महाकाव्य नहीं है, यह राष्ट्रीय गर्व का हिस्सा है। रामा की कहानी थाई कला, नाटक, साहित्य और यहां तक कि शाही संरचना में भी गहरे रूप से बुनी हुई है।
यह परंपरा 1782 में शुरू हुई, जब चक्री वंश की स्थापना हुई। इस वंश के पहले राजा, राजा फुत्थयोत्फा चुलालोक ने खुद को ‘फुत्थयोत्फा चुलालोक द ग्रेट’ का उपनाम दिया और अंग्रेजी में उन्हें ‘रामा I’ कहा गया।
धरोहर को सम्मानित करने के लिए जारी रखी गई थी यह परंपरा
बाद में, इस वंश के छठे राजा, राजा वजीरवुध ने अंग्रेजी में ‘रामा VI’ का शीर्षक इस्तेमाल करना शुरू किया। इसके बाद से यह परंपरा शुरू हुई, जिसमें राजा को ‘रामा’ के शीर्षक से गिनती के साथ पहचाना जाने लगा। यह रामा, भारतीय मिथक में आदर्श राजा के रूप में सम्मानित थे, उनकी धरोहर को सम्मानित करने के लिए यह परंपरा जारी रखी गई।
आज के समय में थाईलैंड के राजा को ‘रामा X’ (रामा दसवां) के नाम से जाना जाता है। उन्हें “फुटबॉल प्रिंस” के नाम से भी जाना जाता है और वह दुनिया के सबसे अमीर शासकों में से एक माने जाते हैं।
संक्षेप में, ‘रामा’ का शीर्षक सिर्फ एक नाम नहीं है, यह भारत और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक संबंध का प्रतीक है, जो रामायण के शाश्वत मूल्यों में निहित है।
थाई राजाओं को ‘रामा’ क्यों कहा जाता है?
थाई राजाओं को ‘रामा’ इस कारण से कहा जाता है क्योंकि चक्री वंश के संस्थापक राजा रामा I ने ‘रामथिबोदी’ नाम अपनाया, जो अयुत्थया के पहले शासक का नाम था। अयुत्थया, जिसे अब थाईलैंड का ऐतिहासिक शहर माना जाता है, का नाम संस्कृत शब्द ‘अयोध्या’ से लिया गया है, जो राम के जन्मस्थान के रूप में रामायण में उल्लेखित है।
चक्री वंश ने इस परंपरा को 200 वर्षों से अधिक समय तक बनाए रखा है और आज भी थाईलैंड का शाही परिवार सम्मान का प्रतीक है। जबकि राजनीति और समाज समय के साथ बदल गए हैं, ‘रामा’ नाम की शाही उपाधि आज भी थाई राजवंश की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह सिर्फ संयोग नहीं है। थाई राजाओं को ‘रामा’ के नाम से पुकारने की परंपरा इतिहास, धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों में गहरे से निहित है। यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि थाईलैंड की राष्ट्रीय पहचान और आध्यात्मिक विश्वासों का प्रतीक है।
थाईलैंड का अयोध्या, प्राचीन शहर अयुत्थया
जिस साम्राज्य को हम अब थाईलैंड के रूप में जानते हैं, वह पहले सियाम के नाम से जाना जाता था। यह साम्राज्य 13वीं सदी के आरंभ में अस्तित्व में आया था। वर्तमान बैंकॉक से लगभग 70 किलोमीटर उत्तर स्थित अयुत्थया, जो कभी सियामी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उस समय का दिल था।
1351 ईस्वी में स्थापित अयुत्थया को सियाम की राजधानी बनाया गया था। दिलचस्प बात यह है कि अयुत्थया का नाम संस्कृत शब्द ‘अयोध्या’ से लिया गया है, जो राम के राज्य के रूप में रामायण में वर्णित है।
यह सिर्फ भाषाई समानता नहीं है, बल्कि यह इस क्षेत्र में हिन्दू परंपराओं की गहरी उपस्थिति को दर्शाता है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण है ‘रामकियेन’, जो रामायण का थाई रूपांतर है, जो थाई संस्कृति, कला और मूल्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह शहर राजा रामथिबोदी द्वारा नामित किया गया था, जो अयुत्थया के पहले शासक माने जाते हैं। उनका नाम, जो भगवान राम के नाम के समान है, यह दिखाता है कि रामायण ने शाही वंश पर कितनी गहरी छाप छोड़ी थी। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन थाईलैंड में कई शाही अनुष्ठान हिन्दू वैदिक परंपराओं से प्रेरित थे और राजशाही ने भगवान राम के आदर्शों का पालन किया—जो एक न्यायपूर्ण, योग्य और दिव्य शासक थे।
आज भी अयुत्थया की धरोहर यह दिखाती है कि भारत की संस्कृति थाईलैंड की पहचान में किस तरह गहरे रूप से समाहित हो गई है।