हर साल 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) इस बार 52वीं बार आयोजित हो रहा है। इस साल की थीम है #BeatPlasticPollution, यानी प्लास्टिक प्रदूषण को हराना। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के नेतृत्व में यह आयोजन दक्षिण कोरिया के जेजू द्वीप में हो रहा है।
प्लास्टिक प्रदूषण आज एक वैश्विक संकट बन चुका है। हर साल 19 से 23 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों और जल स्रोतों में पहुंचता है, और यदि जल्द से जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो 2040 तक यह आंकड़ा 50% तक बढ़ सकता है। इससे न केवल समुद्री जीवन बल्कि इंसानी स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
प्लास्टिक प्रदूषण: जीवन के हर पहलू पर असर
• हर इंसान सालाना 50,000 से ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक कण खा और पी रहा है — यह संख्या और बढ़ जाती है, जब हम हवा के जरिए शरीर में जाने वाले कणों को जोड़ते हैं।
• यदि जलवायु संकट पर ध्यान नहीं दिया गया, तो अगले 10 वर्षों में वायु प्रदूषण सुरक्षित स्तर से 50% अधिक हो सकता है।
• इसी अवधि में, जल और समुद्री इकोसिस्टम में प्लास्टिक प्रदूषण तीन गुना तक बढ़ सकता है।
प्लास्टिक पर वैश्विक संधि की जरूरत
संयुक्त राष्ट्र एक वैश्विक, कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि की दिशा में काम कर रहा है, जो प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र को नियंत्रित करेगा — उत्पादन, उपयोग और निपटान (Production, uses and recycling) । अगली बैठक अगस्त 2025 में प्रस्तावित है, जहां दुनिया भर के देश इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे।
UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक “महत्वाकांक्षी, विश्वसनीय और न्यायसंगत” संधि की मांग की है, जो सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप हो। वहीं, UNEP की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने इनोवेटिव समाधान और प्लास्टिक के विकल्पों पर वैश्विक एकता की जरूरत पर बल दिया।
झारखंड: प्रकृति और हरियाली का उदाहरण
जब पूरी दुनिया पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है, झारखंड जैसे राज्य प्राकृतिक संसाधनों और हरियाली के संरक्षण का प्रेरक उदाहरण बन सकते हैं। यहां के जंगलों में सिमटे हैं बायोडायवर्सिटी के अनमोल खजाने, जैसे:
• सिमडेगा, सरायकेला, लातेहार, पलामू जैसे जिले जहां आज भी घने जंगलों और विविध वन्यजीवों का बसेरा है।
• बेतला नेशनल पार्क और दलमा वाइल्डलाइफ सेंचुरी जैसे क्षेत्र जहां हाथी, तेंदुआ, भालू, चीतल आदि पाए जाते हैं।
• झारखंड के आदिवासी समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली भी पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखने का आदर्श उदाहरण है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर झारखंड के जंगल हमें याद दिलाते हैं कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
क्या करें हम? – जनभागीदारी से ही बनेगा बदलाव
• प्लास्टिक का उपयोग बंद करें या सीमित करें।
• कचरे का सही निपटान करें, खासकर सिंगल यूज़ प्लास्टिक का।
• स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण करें।
• बच्चों को पर्यावरण शिक्षा से जोड़ें।
• स्थानीय प्रशासन और संस्थाओं के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाएं।
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 केवल एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक अभियान है, जो हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एकजुट करता है। झारखंड की हरियाली, वन संपदा और समुदाय आधारित संरक्षण प्रयास इस बात का उदाहरण हैं कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति और जन भागीदारी हो, तो बदलाव मुमकिन है।